उत्तर मुगल काल
मुगल साम्राज्य का पतन
उत्तराधिकार के लिए संघर्ष :
औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात् उत्तराधिकारी के लिए उसके तीन पुत्रों मुहम्मद मुअज्जम, मुहम्मद आजम तथा कामबख्श में युद्ध हुआ। इस युद्ध में उसके सबसे बड़े पुत्र मुहम्मद मुअज्जम की विजय हुई।
1707 ई. में 'जाजऊ' नामक स्थान में मुअज्जम और आजम के बीच युद्ध हुआ, जिसमें आजम मारा गया। 1709 ई. में हैदराबाद के निकट मुअज्जम का कामबख्श के साथ युद्ध हुआ। इसमें कामबख्श मारा गया।
बहादुर शाह प्रथम (1707-12 ई.) :
मई 1707 ई. में मुअज्जम लाहौर के समीप शाहदौला नामक पुल पर 'बहादुरशाह' की उपाधि ग्रहण करके अपने को बादशाह घोषित कर दिया। इस समय उसकी आयु 65 वर्ष थी। उसे शाह आलम प्रथम के नाम से भी जाना जाता है।
उसने संकीर्ण धार्मिक नीति का परित्याग कर दिया तथा शंभाजी के पुत्र शाहू को मुगल कैद से आजाद कर दिया। उसने जजिया को वापस ले लिया एवं मेवाड़ तथा मारवाड़ की स्वतंत्रता को स्वीकार कर लिया।
उसने गुरु गोविन्द सिंह को उच्च मनसब प्रदान किया। लेकिन बंदा बहादुर के विद्रोह को भी दबाया।
बहादुर शाह को खाफी खान ने शाहे बेखबर कहा है। उसे एक महीने तक दफनाया नहीं गया था। गुरूगोविन्द सिंह ने उत्तराधिकार के युद्ध में बहादुर शाह का साथ दिया था।
जहांदार शाह (1712-13 ई.) :
जहांदार शाह के शासन काल से उत्तराधिकार के युद्ध में शहजादों के अलावा महत्वपूर्ण मंत्री भी भाग लेने लगे।
जहांदार शाह उस समय के प्रबल मंत्री जुल्फिकार खां के समर्थन से शासक बना था। वह एक दुर्बल एवं चरित्रहीन व्यक्ति था, जिसके कारण प्रशासन की बागडोर उसके वजीर जुल्फिकार खां के हाथों में थी।
उसने मराठा सरदार शाहू को दक्कन में चौथ एवं सरदेशमुखी वसूल करने का अधिकार प्रदान किया।
1713 ई. में आगरा में फर्रूखसियर ने उसे शिखस्त दी। वह एक दरबारी सुन्दरी लाल कुंवर के प्रभाव में था। जहांदार शाह को लम्पट मूर्ख की उपाधि दी गयी थी।
कंवर खां ने जहांदार शाह के शासनकाल का वर्णन करते हुए कहा है- 'उल्लू चील के घोंसले में रहता था और कौआ बुलबुल का स्थान लेता था।'
फर्रुखसियर (1713-19 ई.) :
इसे मुगल वंश का घृणित कायर कहा गया।
फर्रुखसियर अजीम-उस-शान का पुत्र था। वह सैयद बंधुओं के सहयोग से शासक बना था। सैयद बंधुओं में सैयद हुसैन अली उस समय पटना का उप-गर्वनर था तथा सैयद अब्दुल्ला खां इलाहाबाद का गवर्नर था।
1715 ई. में उसने बन्दा बहादुर को मरवा डाला। 1719 ई. में हुसैन अली ने पेशवा बालाजी विश्वनाथ से एक संधि की। इस संधि में दिल्ली में सत्ता के संघर्ष में मराठों द्वारा सैनिक सहायता देने के आश्वासन पर उन्हें कई रियायतें दी गयीं।
1717 ई. में फर्रुखसियर ने ईस्ट इंडिया कम्पनी को व्यापारिक अधिकार प्रदान किये। इसके अन्तर्गत 3000 रु. वार्षिक कर के बदले बंगाल में व्यापार का भी अधिकार दिया गया।
राजपूत राजा अजीत सिंह की पुत्री से फर्रुखसियर का विवाह हुआ था।
1719 ई. में सैयद बंधुओं ने मराठों की मदद से फर्रुखसियर को मार कर रफी-उद-दरजात को गद्दी पर बैठाया लेकिन वह चार महीने बाद क्षय रोग से मर गया। उसके पश्चात् रफी-उद-दौला शाहजहां द्वितीय के नाम से गद्दी पर बैठा। लेकिन जल्दी ही वह भी दुनिया छोड़ गया।
सैयद बंधुओं को 'राजा बनाने वाला' (शासक निर्माता) कहा गया है।
मुहम्मद शाह (1719-48 ई.) :
सैयद बंधुओं ने जहानशाह के 18 वर्षीय पुत्र रोशन अख्तर को मुहम्मद शाह की उपाधि प्रदान कर गद्दी पर बैठाया। कलान्तर में उसकी विलासितापूर्ण प्रवृति के कारण उसे रंगीला की उपाधि भी मिली।
सैयद बंधुओं में हुसैन अली को हैदर खां ने मार डाला तथा 1724 में अब्दुल्ला खां को विष पिलाकर मार दिया गया।
मुहम्मद शाह के शासन काल में सआदत खां ने अवध में तथा मुर्शिद कुली खां ने बंगाल में स्वतंत्र राज्य की नींव रखी।
1739 में ईरान का नेपालियन के नाम से विख्यात नादिरशाह ने भारत पर आक्रमण किया। जब नादिर शाह ने कंधार पर हमला किया था तो मुहम्मद शाह ने उसे विश्वास दिलाया था कि भगोड़ों को काबुल में शरण नहीं दी जाएगी, परन्तु ऐसा नहीं हुआ। जब नादिरशाह ने एक दूत भेजा तो दिल्ली में उसकी हत्या कर दी गयी। नादिरशाह ने इसे भारत आक्रमण का प्रत्यक्ष कारण बना लिया।
24 फरवरी, 1739 को करनाल में मुहम्मद शाह और नादिरशाह के बीच युद्ध हुआ। निजाम-उल-मुल्क, कमरुद्दीन तथा सआदत खां मुगल सेना की तरफ थे। युद्ध मात्र तीन घंटे चला। युद्ध के पश्चात् निजाम-उल-मुल्क ने शांति दूत की भूमिका निभाई। नादिरशाह को ’ईरान का नेपोलियन‘ भी कहते हैं।
दिल्ली में कुछ मुगल सैनिकों ने फारसी सैनिकों का वध कर डाला। इस पर क्रुद्ध होकर नादिर शाह ने दिल्ली में सामूहिक कत्लेआम करवाया। दिल्ली से वह अपने साथ मयूर सिंहासन तथा कोहिनूर हीरा भी लूट कर ले गया।
अहमदशाह (1748-54 ई.) :
अहमदशाह मुहम्मद शाह का पुत्र था। उसकी माता एक नृत्यांगना उधमबाई थी।
इसके शासन काल में 1748-49 में अफगान शासक अहमद शाह दुर्रानी (अब्दाली) ने आक्रमण किया और उससे सम्पूर्ण प्रदेश का अधिकार पत्र लिखवा लिया।
आलमगीर द्वितीय (1754-59 ई.) :
मुगल वजीर इमाद-उल-मुल्क ने मुगल सम्राट अहमद शाह को अंधा कर उसके स्थान पर आलमगीर द्वितीय को सिंहासन पर सत्तारूढ़ किया। इस प्रकार उसने शासक निर्माता की भूमिका अदा की।
आलमगीर द्वितीय जहांदार शाह का पुत्र था।
उसके शासन काल में अहमद शाह अब्दाली ने चौथी बार आक्रमण किया और मथुरा तक बढ़ गया।
शाह आलम द्वितीय (1759-1806 ई.) :
शाहआलम द्वितीय का वास्तविक नाम अलीगौहर था।
उसने 1764 ई. में बंगाल के मीर कासिम और अवध के शुजाउद्दौला के साथ मिलकर अंग्रेजों के विरूद्ध बक्सर की लड़ाई लड़ी। लेकिन हार जाने के बाद कई वर्षों तक इलाहाबाद में ईस्ट इंडिया कम्पनी के संरक्षण में रहा 1772 ई. में वह मराठों की सहायता से दिल्ली पहुंचा।
1765 ई. में उसने बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा की दीवानी ईस्ट इण्डिया कम्पनी (1765 में इलाहाबाद की संधि) को दे दी और कम्पनी ने उसे 26 लाख रु. की वार्षिक राशि देने का वचन दिया।
रोहिल्ला सरदार गुलाम कादिर ने उसे अंधा कर दिया और उसे गद्दी से हटाकर बिदारख्त को गद्दी पर बैठाया। परन्तु मराठों ने उसे पुनः सिंहासनरूढ़ किया।
1803 में अंग्रेजों ने दिल्ली पर कब्जा कर लिया। उसके बाद 1806 में मृत्यु तक अंग्रेजों के पेंशन पर रहा।
अकबर द्वितीय (1806-37 ई.) :
यह नाममात्र का शासक था। इसने राम मोहन राय को 'राजा' की उपाधि दी तथा राजा राम मोहन राय को अपनी पेंशन बढ़ाने के लिए इंग्लैंड भेजा।
बहादुरशाह द्वितीय (1837-62 ई.) :
बहादुर शाह द्वितीय अंतिम मुगल बादशाह था। 1857 के विद्रोह में भाग लेने के कारण उसे बंदी बनाकर रंगून निष्कासित कर दिया गया। 1862 में रंगून में ही उसकी मृत्यु हो गयी। रंगून में ही उसकी कब्र है। उसके बाद मुगल वंश समाप्त हो गया।
उसे शायरी का बड़ा शौक था। बहादुर शाह का उपनाम ’जफर‘ था।
Post a Comment
0 Comments