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मराठा संघ नोट्स pdf | maratha empire notes download

 मराठा संघ (Maratha Sangh)

मराठों का अभ्युदय :

  • मराठे 17वीं सदी से बीजापुर, अहमदनगर तथा गोलकुंडा राज्यों की सेना में कार्यरत थे। उनके पहाड़ी किलों को मराठे ही नियंत्रित करते थे। इन मराठों को राजा, नायक तथा राव की उपाधि प्रदान की जाती थी।

  • कालान्तर में मराठा राज्य संघ में ग्वालियर के सिंधिया, नागपुर के भोंसले, बड़ौदा के गायकवाड़, इंदौर के होल्कर तथा पूना के पेशवा सम्मिलित थे।

 

शिवाजी (1627-80 ई.) :

  • शिवाजी अपने को सिसोदिया शासक का वंशज मानते थे। परन्तु उनके पूर्वज मराठा जाति के 'भोंसले वंश' से थे।

  • शिवाजी के पिता शाहजी भोंसले ने अपना राजनीतिक जीवन अहमदनगर के प्रधानमंत्री मलिक अंबर के अधीन आरम्भ किया।

  • शिवाजी का जन्म 10 अप्रैल, 1627 ई. को पूना के निकट शिवनेर के दुर्ग में हुआ था। उनकी माता का नाम जीजाबाई था।

  • बचपन में वे 'दादाजी कोंणदेव' के संरक्षण में रहे और वे उनके शैक्षणिक गुरु रहे। शिवाजी के अध्यात्मिक गुरु रामदास थे।

  • 1640-41 में शिवाजी का विवाह सईबाई निम्बालकर के साथ हुआ।

  • 1643 में शिवाजी ने बीजापुर से 'सिंहगढ़' के किले को विजित किया।

  • 1646 ई. - रायगढ़ तथा चाकन दुर्ग पर विजय (बीजापुर के सुल्तान से छीनकर)।

  • 1648 ई. - पुरन्दर के किले पर विजय।

  • शिवाजी ने रायगढ़ में 1656 ई. में अपनी राजधानी बनायी तथा 1674 में यहीं राज्याभिषेक किया और छत्रपति की उपाधि धारण की। पंडित विश्वेश्वर उर्फ गंगाभट्ट ने शिवाजी का राज्याभिषेक करवाया था। शिवाजी ने क्षत्रिय कुलवतांस तथा हैन्दव धर्मोद्धारक की पदवी धारण की थी।

  • शिवाजी का प्रथम बार मुगलों से मुकाबला 1657 ई. में हुआ। 1659 ई. में बीजापुर के सरदार अफजल खां से उनका मुकाबला हुआ। उन्होंने अफजल खां को मार डाला।

  • 1663-65 ई. में मुगलों ने जोधपुर नरेश जसवंत सिंह को शिवाजी को दबाने के लिए नियुक्त किया लेकिन वे असफल रहे। उसके बाद मिर्जा राजा जयसिंह तथा दिलेरखान को शिवाजी पर नियंत्रण रखने के लिए नियुक्त किया गया।

  • जून, 1665 के एक युद्ध में शिवाजी और मिर्जा राजा जयसिंह के बीच युद्ध हुआ, जिसमें शिवाजी पराजित हुए और उन दोनों के बीच पुरन्दर की संधि हुई।

  • शिवाजी के भाई व्यंकोजी ने तंजाबूर में राज्याभिषेक किया और अपनी प्रभुसत्ता की घोषणा कर दी।

  • बीजापुर के अभियान के लिए शिवाजी ने गोलकुण्डा के दो मंत्रियों मदन्ना और अकन्ना के साथ संधि की। यही उनका अंतिम अभियान था। 1678 ई. में उनका पुत्र शम्भाजी दक्कन के सूबेदार दिलेर खां से मिल गया।

  • 53 वर्ष की अवस्था में शिवाजी की मृत्यु हो गयी।

 

शिवाजी के उत्तराधिकारी

शम्भाजी (1680-89 ई.) :

  • शिवाजी के ज्येष्ठ पुत्र शम्भाजी ने 1680 से 1689 ई. तक राज्य किया। उसके समय कन्नौज का एक ब्राह्मण कवि कलश मंत्री नियुक्त किया गया।

  • शम्भाजी ने अपनी सेना का प्रमुख भाग जिन्जि के द्वीप को सिद्धियों से छीनने में लगाया। 1681 में उसको औरंगजेब के विद्रोही पुत्र अकबर को शरण देने के आरोप में मुगल सेना का प्रकोप झेलना पड़ा और 1689 ई. में संगमेश्वर के युद्ध में पराजित हो जाने पर कवि कलश सहित उसकी हत्या कर दी गयी।

  • शम्भाजी की विधवा येसूबाई ने कुछ समय तक रायगढ़ के दुर्ग में मुगलों के प्रवेश को रोके रखा लेकिन अंततः वह और उसका पुत्र शाहू मुगलों द्वारा बंदी बना लिए गये।

  • औरंगजेब की पुत्री जीनत-उल-निशा ने शाहू को अपने पुत्र की भांति पाला।

 

राजाराम (1689-1700 ई.) :

  • शिवाजी के द्वितीय पुत्र राजाराम रायगढ़ पर मुगल अधिपत्य स्थापित हो जाने के उपरान्त कर्नाटक स्थित जिन्जि के किले में चला गया और वहीं से उसने औरंगजेब के विरूद्ध स्वतंत्रता युद्ध का नेतृत्व किया।

  • 1689 से 1700 तक चलने वाले मराठा-मुगल युद्ध को मराठा स्वतंत्रता संग्राम के नाम से जाना जाता है।

  • औरंगजेब ने जब जिन्जि पर अधिकार कर लिया तो राजाराम विशालगढ़ चला गया और वहां से सतारा गया जहां 1700 ई. में उसकी मृत्यु हो गयी। उसकी मृत्यु के बाद उसकी विधवा ताराबाई ने अपने चार वर्षीय पुत्र को शिवाजी द्वितीय के नाम से सतारा में गद्दी पर बैठाया और संघर्ष जारी रखा।

 

शाहू (1707-49 ई.) :

  • शम्भाजी का पुत्र शाहू और उसकी मां येसूबाई 17 वर्ष़ों तक औरंगजेब की कैद में रहे। औरंगजेब के पुत्र आजम शाह ने 1707 ई. में जुल्फिकार खां के परामर्श से शाहू को महाराष्ट्र वापस जाने दिया ताकि इससे मराठों में फूट पड़ जाए। शाहू को मुगलों ने मराठा राजा भी मान लिया।

  • महाराष्ट्र में शाहू का स्वागत हुआ लेकिन ताराबाई, जो कि अपने पुत्र शिवाजी द्वितीय को सतारा में मराठा राजा के रूप में राज्याभिषेक कर चुकी थी, ने उसका विरोध किया फलस्वरूप मराठा-शक्ति दो गुटों में विभाजित हो गयी।

  • 1707 ई. में भीमा नदी के किनारे खेड़ नामक स्थान पर हुए युद्ध में ताराबाई पराजित हुई। 12 जनवरी, 1708 को शाहू ने सतारा में अपना राज्याभिषेक किया।

 

मराठा पेशवा

  • 1749 ई. में अपनी मृत्यु से पूर्व शाहू ने एक वसीयत द्वारा मराठा प्रशासन की शक्ति पेशवा को दे दी थी।

  • राजा के अधिकारों का पूर्ण उपयोग करने वाला अंतिम मराठा शासक शाहू था। उसके बाद के मराठा राजा नाम मात्र के शासक रहे और राज्य की सम्पूर्ण शक्ति पेशवा के हाथों में केन्द्रित होती गयी।

 

बालाजी विश्वनाथ (1713-20 ई.) :

  • शाहू द्वारा 1713 में बालाजी विश्वनाथ को प्रथम पेशवा नियुक्त किया गया। वह मराठा साम्राज्य के द्वितीय संस्थापक के नाम से प्रसिद्ध है।

  • 1719 ई. में मराठों को औरंगाबाद, बराबर, खानदेश, बीदर, गोलकुण्डा और बीजापुर से चौथ और सरदेशमुखी वसूल करने का अधिकार प्राप्त हो गया। 'सर रिचर्ड टेंपल' ने इस संधि को मराठा साम्राज्य के मैग्नाकार्टा की संज्ञा दी है।

  • बालाजी विश्वनाथ और खांडेराव दामादे के नेतृत्व में मराठा सेना पहली बार दिल्ली गयी और उनकी मदद से सैयद बंधुओं ने मुगल सम्राट फर्रुखसियार को सिंहासन से हटा दिया।

 

बाजीराव प्रथम (1720-40 ई.) :

  • बाजीराव प्रथम बालाजी विश्वनाथ का पुत्र था। वह 20 वर्ष की आयु में पेशवा बना। वह सर्वश्रेष्ठ मराठा सेनापति साबित हुआ।

  • 'मस्तानी' नामक मुस्लिम स्त्री से प्रेम संबंध के कारण भी वह चर्चित रहा।

  • शिवाजी के बाद मराठों में बाजीराव प्रथम ने गुरिल्ला युद्ध प्रणाली को अपनाया। इसे लड़ाकू पेशवा और शक्ति का अवतार भी कहा जाता है।

 

बालाजी बाजीराव (1740-61 ई.) :

  • बाजीराव के बाद शाहू ने उसके 18 वर्षीय पुत्र बालाजी, जिसे 'नाना साहब' भी कहा जाता है, पेशवा नियुक्त किया।

  • 1752 ई. तक मराठे अपनी शक्ति की पराकाष्ठा पर पहुंच गये। मुगल बादशाह उनके हाथों की कठपुतली बन गये। वे सम्पूर्ण भारत में चौथ तथा सरदेशमुखी वसूलने लगे।

  • 14 जनवरी, 1761 ई. को अहमदशाह अब्दाली और मराठा सेना के बीच पानीपत का तृतीय युद्ध हुआ, जिसमें मराठा सेना बुरी तरह पराजित हुई।

  • इस युद्ध में मराठों की ओर से नाममात्र का सेनापति पेशवा का पुत्र विश्वास राव और वास्तविक सेनापति सदाशिव राव भाऊ था।

  • इस दुखद समाचार से स्तंभित हो जून 1716 ई. में पेशवा की पूना में मृत्यु हो गयी। मराठों की हार ने हिन्दू राष्ट्र की परिकल्पना को तोड़ दिया और दक्षिण भारत में अपनी सत्ता को सुदृढ़ करने का मौका दे दिया।

 

माधव नारायण प्रथम (1761-72 ई.) :

  • माधव राव 17 वर्ष की उम्र में पेशवा बना। वह प्रतिभाशाली सैनिक और राजनेता था। छोटी अवधि में ही उसने मराठा साम्राज्य की खोई हुई किस्मत को पुनः जागृत कर दिया।

  • उसने हैदराबाद के निजाम को हराया, मैसूर के हैदरअली को नजराना देने के लिए विवश किया और राजपूत, रूहेलों तथा जाट सरदारों को अपने अधीन लाकर उत्तर भारत पर अपने अधिकार का फिर से दावा किया।

 

माधव नारायण द्वितीय (1774-95 ई.) :

  • पेशवा माधव नारायण द्वितीय अल्पायु था। उधर पुणे में माधव राव के समर्थकों और रघुनाथ राव के समर्थकों के मध्य लगातार षड्यंत्र चल रहे थे।

  • इस समय माधव राव को मराठा सरदारों द्वारा गठित 'बारभाई परिषद' ने संरक्षण प्रदान किया। इस परिषद में सखाराम बापू, महादजी सिंधिया और नाना फड़नवीस प्रमुख थे।

  • इसी के काल में 1775 से 1782 के मध्य प्रथम अंग्रेज-मराठा युद्ध हुआ।

  • प्रथम अंग्रेज-मराठा युद्ध के दौरान नाना फड़नवीस ने टीपू सुल्तान (मैसूर) तथा फ्रांसीसियों के साथ मिलकर एक सम्मिलित ब्रिटिश साम्राज्य विरोधी गुट बनाने का प्रयास किया।

  • सालाबाई की संधि (1782 ई.) के पश्चात् मराठा संघ के विभिन्न सरदार पेशवा की आज्ञा के बिना स्वतंत्र रूप से कार्य करने लगे।

 

बाजीराव द्वितीय (1796-1818 ई.) :

  • सवाई माधव राव के पश्चात् रघुनाथ राव का अयोग्य पुत्र बाजीराव द्वितीय पेशवा बना।

  • 1802 ई. में बाजीराव द्वितीय ने ईस्ट इंडिया कम्पनी से बसीन की संधि की। इस संधि के कारण पेशवा कम्पनी के प्रभुत्व में आ गया। फलस्वरूप द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध (1803-05 ई.) हुआ।

  • तृतीय आंग्ल-मराठा युद्ध (1816-18) में भी मराठे हार गये। इसके पश्चात् 1818 में पेशवा का पद सदा के लिए समाप्त कर दिया गया। बाजीराव द्वितीय को अंग्रेजों ने आठ लाख रुपया प्रतिवर्ष पेंशन देकर कानपुर क निकट बिठूर भेज दिया। इसके बावजूद मराठा राज्यों का अस्तित्व बनाये रखा गया था।

  • 1851 ई. में बाजीराव द्वितीय की मृत्यु के पश्चात् अंग्रेजों ने उसके पुत्र नाना साहब (धूंधू पंत) को पेंशन देने से इंकार कर दिया। प्रतिशोधा स्वरूप नाना साहब ने 1857 ई. के विद्रोह में सक्रिय हिस्सा लिया। अंग्रजों द्वारा दमन प्रक्रिया आरम्भ होने पर वह नेपाल भाग गया।

 

क्षेत्रीय राज्य

बंगाल :

  • 18वीं सदी में स्वायत्त बंगाल प्रान्त की नींव मुर्शिद कुली खां ने डाली।

मुर्शित कुली खां :

  • मुर्शिद कुली खां ने ढाका से हटाकर मुर्शिदाबाद को बंगाल की राजधानी बनायी।

शुजाउद्दीन (1726-34 ई.) :

  • 1726 ई. में शुजाउद्दीन बंगाल का नवाब बना। 1733 ई. में उसे बिहार की सूबेदारी भी मिल गयी।

 

सरफराज खां (1739-40 ई.) :

  • 1739 ई. में शुजाउद्दीन की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र सरफराज खां बंगाल का नवाब बना।

 

अलीवर्दी खां (1740-56 ई.) :

  • 1740 ई. में अलीवर्दी खां हाजी अहमद और जगत सेठ की सहायता से राजमहल के निकट गिरिया की लड़ाई में सरफराज खां की हत्या कर नवाब बना।

  • वह बंगाल का अंतिम शक्तिशाली नवाब था। उसने अंग्रेजों तथा फ्रांसीसियों पर अंकुश लगाये रखा तथा कलकत्ता और चन्द्रनगर की फैक्ट्रियों की किलेबंदी नहीं करने दी।

सिराजुद्दौला (1756-57 ई.) :

  • अलीवर्दी खां की मृत्यु के पश्चात् उसका दौहित्र सिराजुद्दौला नवाब बना।

  • इसके काल में अंग्रेजों ने दस्तक प्रथा का दुरुपयोग करना शुरू कर दिया तथा अपनी फैक्ट्री की किलेबंदी कर ली। इसके कारण सिराजुद्दौला ने जून, 1756 को कासिम बाजार स्थित अंग्रेजों की फैक्ट्री पर आक्रमण कर दिया। यहीं पर ब्लैक होल वाली दुर्घटना हुई थी। लेकिन एडमिरल वाटसन एवं कर्नल क्लाइव ने नवाब पर घेरा डालकर संधि के लिए मजबूर कर दिया।

  • लेकिन अंग्रेजों एवं नवाब के बीच शांति स्थापित नहीं हो सकी और अंतर दोनों के बीच जून, 1757 को प्रसिद्ध 'प्लासी का युद्ध' हुआ, जिसमें नवाब मारा गया।

 

मीर जाफर (1757-60 ई.) :

  • सिराजुद्दौला की हत्या के बाद अंग्रेजों ने मीर जाफर को नवाब बनाया।

  • इसके समय से बंगाल पर अंग्रेजों का वर्चस्व हो गया। अंग्रेजों की बढ़ती मांगों को पूरा नहीं कर पाया फलस्वरूप उसे गद्दी से उतार दिया गया।

 

मीर कासिम (1760-63 ई.) :

  • 1760 ई. में अंग्रेजों के समर्थन से मीर कासिम नवाब बना। वह अपनी राजधानी मुर्शिदाबाद से हटाकर मुंगेर ले गया।

  • दस्तक प्रथा का अंग्रेजों द्वारा दुरुप्रयोग के कारण 1764 ई. में मीर कासिम, अवध के नवाब एवं मुगल बादशाह शाह आलम की संयुक्त सेना और अंग्रेजों के बीच बक्सर का युद्ध हुआ। जिसमें मीर कासिम हार गया।

  • 1763 से 1765 ई. के बीच मीर जाफर पुनः नवाब बना। 1765 ई. में उसके देहान्त के पश्चात् उसका पुत्र नज्मउद्दौला नवाब बना।

  • 1765 में क्लाइव ने बंगाल में ऐसी व्यवस्था की स्थापना की जिसे दोहरी सरकार के रूप में जाना जाता है और वह 1772 तक चली। इसके बाद अंग्रेजों की ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने प्रशासन सीधा अपने हाथ में ले लिया।

 

अवध प्रान्त

सआदत खां :

  • सआदत खां ने स्वायत्त अवध प्रान्त की नींव डाली।

  • सआदत खां के बाद सफदरजंग नवाब बना। उसे मुगलों के दरबार में 1748 ई. में वजीर का पद प्राप्त हुआ।

  • सफदरजंग के पश्चात् शुजाउद्दौला नवाब बना, उसने भी मुगलों के दरबार में वजीर का पद प्राप्त किया। उसने 1761 ई. को पानीपत के तृतीय युद्ध में मराठों के खिलाफ अहमदशाह अब्दाली का पक्ष लिया और उत्तर भारत में मराठों को बढ़ने से रोका।

  • शुजाउद्दौला को बक्सर के युद्ध (1764 ई.) के बाद इलाहाबाद की संधि द्वारा कड़ा और इलाहाबाद तथा 50 लाख रुपये युद्ध हर्जाने के रूप में अंग्रेजों को देने पड़े।

  • नवाब आसफ उद्दौला के काल में 1775 ई. में अवध की राजधानी फैजाबाद के स्थान पर लखनऊ आ गयी।

  • अवध के अंतिम स्वतंत्र नवाब वाजिद अली शाह के समय डलहौजी ने 1856 ई. में अवध का विलय अंग्रेजी साम्राज्य में कर लिया।

 

हैदराबाद :

  • सन् 1724 ई. में चिनकिलिच खां ने हैदराबाद में स्वतंत्र राज्य की स्थापना की थी। उसे 'निजामुलमुल्क' भी कहा जाता है। मुगल सम्राट मुहम्मद शाह ने उसे आसफजाह की उपाधि प्रदान की थी।   

 

पंजाब :

  • सिक्खों के दसवें गुरु, गुरु गोविन्द सिंह के नेतृत्व में सिक्ख एक राजनैतिक एवं फौजी शक्ति बन गये।

  • गुरु गोविन्द सिंह के पश्चात् गुरु परम्परा समाप्त हो गयी। उनके बाद उनका शिष्य बन्दा बहादुर (बन्दा सिंह) ने सिक्कों का नेतृत्व संभाला।

  • बन्दा बहादुर के शिष्य उन्हें 'सच्चा बादशाह' कहते थे।

  • 1760 ई. तक पंजाब पर सिक्खों का पूर्ण अधिकार हो गया।

रणजीत सिंह :

  • 1780 में जन्मे रणजीत सिंह सुकरचकिया मिस्ल से संबंधित थे तथा 1792 में अपनी माता के संरक्षण में सुकरचकिया मिस्ल के प्रधान नियुक्त हुए।

  • रणजीत सिंह ने लाहौर को राजनीतिक राजधानी बनाया और अमृतसर मंदिर के गुंबद पर सोना मढ़वाया।

  • अप्रैल, 1809 में चार्ल्स मेटकाफ और रणजीत सिंह के मध्य अमृतसर की संधि हुई, जिससे सतलज नदी के पूर्वी क्षेत्र अंग्रेजों के अधीन हो गये।

  • 1839 ई. में रणजीत सिंह की मृत्यु हो गयी।

  • अंग्रेजों ने 1845-46 में पंजाब पर आक्रमण किया तथा लाहौर की संधि (मार्च 1846 ई.) के द्वारा अंग्रेजों को सतलज नदी के पार के प्रदेश तथा सतलज एवं व्यास नदियों के मध्य के सभी दुर्ग प्राप्त हो गये।

  • दिसम्बर, 1846 ई. में भैरोवाल संधि के अंतर्गत अल्पवयस्क शासक दिलीप सिंह के संरक्षण हेतु अंग्रेजी सेना पंजाब में पदस्थापित कर दी गयी।

  • 1848 ई. में मूलराज एवं शेरसिंह के विद्रोह के कारण द्वितीय आंग्ल- सिक्ख युद्ध आरम्भ हुआ तथा 1849 में लार्ड डलहौजी द्वारा पंजाब का विलय अंग्रेजी साम्राज्य में कर लिया गया तथा दिलीप सिंह को उसकी माता के साथ इंग्लैंड भेज दिया गया।


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