Type Here to Get Search Results !

भारत में यूरोपियों का आगमन नोट्स pdf | Bharat mein European ka aagman notes Download

भारत में यूरोपियों का आगमन (Bharat mein European ka Aagman)

आधुनिक काल में समुद्री मार्ग से भारत आने वाले यूरोपीय व्यापारियों का क्रम इस प्रकार था-1. पुर्तगाली 2. डच 3. अंग्रेज 4. फ्रांसीसी।

पुर्तगाली

  • वास्को डि गामा नामक पुर्तगाली नाविक केप ऑफ गुड होप होकर समुद्री मार्ग से 17 मई, 1498 ई. को भारत के कालीकट बंदरगाह पर पहुंचा। कालीकट का शासक जमोरिन था। इस प्रकार आधुनिक काल में समुद्री मार्ग से भारत आने वाले पहले व्यापारी 'पुर्तगाली' थे।
  • 'फ्रांसिको डि अल्मेडा' (1505-1509 ई.) भारत में पहला पुर्तगाली गवर्नर था।
  • भारत में पुर्तगाली शक्ति की वास्तविक नींव डालने वाला गवर्नर 'अलफांसो डि अलबुकर्क' (1509-15 ई.) था। वह 1503 ई. में पहली बार एक छोटे जहाजी के बेड़े का नायक बनकर भारत आया था।
  • 1661 ई. में तत्कालीन ब्रिटिश सम्राट 'चार्ल्स द्वितीय' द्वारा एक पुर्तगाली राजकुमारी कैथरीन से विवाह करने पर पुर्तगालियों ने उसे मुम्बई का द्वीप दहेज में दे दिया था।

डच

  • 1602 ई. में 'डच यूनाईटेड ईस्ट इंडिया कम्पनी' की स्थापना हुई।
  • व्यापारिक स्वार्थों से प्रेरित होकर डचों ने भारत में कोरोमण्डल समुद्र तट पर और बंगाल, बिहार एवं उड़ीसा में व्यापारिक कोठियां (फैक्ट्रियां) स्थापित की।
  • सत्रहवीं शताब्दी में भारत से किए जाने वाले मसाले के व्यापार पर डचों का एकाधिकार था।
  • डचों का भारत में अंतिम रूप से पतन 1759 ई. में अंग्रेजों एवं डचों के मध्य बेदरा के युद्ध के बाद हुआ। इस युद्ध में अंग्रेजी सेना का नेतृत्व क्लाइव ने किया था।

अंग्रेजी ईस्ट इण्डिया कम्पनी

  • 1599 ई. में पूर्व के देशों के साथ व्यापार करने के लिए अंग्रेज व्यापारियों द्वारा मर्चेंट एडवेंचर्स नामक एक अंग्रेजी कम्पनी की स्थापना की गयी।
  • 31 दिसम्बर, 1600 ई. को भारत में 'दि गवर्नर एंड कम्पनी ऑफ मर्चेंट्स ऑफ लंदन व ट्रेडिंग इन्टू दि ईस्ट इंडीज' अर्थात् 'ईस्ट इंडिया कम्पनी' की स्थापना हुई।
  • ईस्ट इंडिया कम्पनी को तत्कालीन ब्रिटिश महारानी एलिजाबेथ (1558-1608 ई.) ने 31 दिसम्बर, 1600 को पूर्व के साथ व्यापार करने का विशेषाधिकार दिया।
  • अंग्रेजों ने भारत के पश्चिमी तट पर स्थित सूरत में अपनी प्रथम फैक्ट्री में स्थापित की।
  • हॉकिंस 1611 ई. में जहांगीर ने एक आज्ञापत्र (फरमान) द्वारा अंग्रेजों को सूरत में स्थायी रूप से एक कोठी स्थापित करने की अनुमति दे दी।
  • जहांगीर ने कैप्टन हॉकिंस को 400 का मनसब और एक जागीर भी प्रदान किया।
  • 1615 ई. में इंग्लैंड के राजा जेम्स प्रथम का एक राजदूत सर टॉमस रो जहांगीर के दरबार में आया और 1618 ई. तक रहा। उसका उद्देश्य एक व्यापारिक संधि करना था।
  • 1611 ई. में अंग्रेजों ने दक्षिण भारत में अपनी प्रथम फैक्ट्री मसुलीपट्टनम में स्थापित की, लेकिन जल्दी ही उनकी गतिविधियों का मुख्य केन्द्र 'मद्रास' हो गया।
  • 1668 ई. में बम्बई को पुर्तगालियों से दहेज में प्राप्त करने वाले चार्ल्स द्वितीय ने इसे ईस्ट इंडिया कम्पनी को दस पौंड वार्षिक किराये पर दे दिया।
  • बंगाल में 1651 ई. में सुल्तान शुजा ने तीन हजार रुपये के निश्चित वार्षिक कर के बदले अंग्रेजों को व्यापार का विशेषाधिकार दे दिया।
  • 1698 ई. में अंग्रेजों को सुतानाती, कोलिकाता (कालीघाट-कलकत्ता) और गोविन्दपुर नामक तीन गांवों की जमींदारी 1200 रु. में दे दी गयी।
  • यह नवीन किलाबंद बस्ती फोर्ट विलियम के नाम से प्रसिद्ध हुई। यहाँ एक प्रेसिडेंट और कौंसिल की स्थापना हुई। 1700 ई. में बंगाल की अंग्रेजी कोठियां इन्हीं के नियंत्रण में रख दी गयी।
  • सर चार्ल्स आयर फोर्ट विलियम का पहला प्रेसीडेंट हुआ।
  • फोर्ट विलियम कालान्तर में कलकत्ता नगर कहलाया जिसकी नींव जार्ब चार्नाक के प्रयास से पड़ी।
  • सर्जन हैमिल्टन ने सम्राट फर्रुखसियर की एक दर्दनाक बीमारी को ठीक कर दिया, जिससे प्रसन्न होकर सम्राट ने 1717 ई. में तीन फरमान जारी करके कम्पनी को अनेक महत्वपूर्ण अधिकार दे दिये।
  • 1717 ई. के फरमान को कम्पनी का मैग्ना कार्टा कहा गया। (इतिहासकार और्म के अनुसार)।

फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कम्पनी

  • 1664 में स्थापित। भारत में फ्रांसीसियों की पहली कोठी फ्रैंकों कैरो द्वारा सूरत में स्थापित हुई।
  • मर्कारा, गोलकुंडा के सुल्तान से एक अधिकार पत्र प्राप्त कर 1669 ई. में मसूलीपट्टनम में एक दूसरी में फ्रांसीसी कोठी स्थापित करने में सफल हुआ।

प्रभुत्व के लिए संघर्ष

अंग्रेज-फ्रांसीसी संघर्ष

  • अंग्रेज-फ्रांसीसी संघर्ष कर्नाटक युद्ध के नाम से भी प्रसिद्ध है।

तृतीय कर्नाटक युद्ध (1758-63 ई.) :

  • इस युद्ध का कारण 1756 ई. में यूरोप में सप्तवर्षीय युद्ध का आरम्भ होना था, जिसमें इंग्लैंड और फ्रांस एक-दूसरे के शत्रु बन गये थे।
  • 1757 ई. में फ्रांसीसियों ने कर्नाटक के कुछ हिस्सों पर अधिकार कर लिया और अंग्रेजों ने उत्तरी भारत के अनेक फ्रांसीसी केन्द्रों (चन्द्रनगर, पटना आदि) पर अधिकार कर लिया।
  • अप्रैल, 1758 में फ्रांसीसी सेनापति काउंट-डी-लैली के भारत आने के बाद गंभीर युद्ध शुरू हुआ। लेकिन 1760 ई. में वांडीवाश के युद्ध में अंग्रेजी सेनापति सर आयर कूट के फ्रांसीसियों को निर्णायक रूप से पराजित कर दिया। इसके बाद फ्रांसीसी शक्ति भारत में समाप्त हो गयी।
  • 1763 ई. में पेरिस की संधि से पांडिचेरी, चंद्रनगर आदि स्थान फ्रांसीसियों को वापस मिल गये परन्तु वे उसकी किलेबंदी नहीं कर सकते थे।

प्रथम आंग्ल-मैसूर युद्ध (1766-69 ई.) :

  • हैदरअली अंग्रेजों को भारत से निकालना चाहता था। अंग्रेजों ने निजाम तथा मराठों के साथ मिलकर हैदर के विरुद्ध संघ बनाया, जिसे हैदर ने तोड़ दिया।
  • मद्रास के निकट 1769 में हैदर ने अंग्रेजों को हरा दिया फलस्वरूप दोनों में मद्रास की संधि हुई।

द्वितीय आंग्ल-मैसूर युद्ध (1780-84 ई.) :

  • 1771 में अंग्रेजों ने हैदरअली की मराठों के विरुद्ध मदद नहीं की। अंग्रेजों ने हैदर के अधिकार क्षेत्र में स्थित माही पर अधिकार कर लिया।
  • 1780 ई. में अर्काट पर हैदर ने अधिकार कर लिया। 1781 में पोर्ट-नोवो में सर आयरकूट ने हैदर को पराजित किया। 1782 में हैदर की मृत्यु हो गयी।
  • 1784 में टीपू और मैक कोर्टनी के बीच मैंगलोर की संधि हुई।

तृतीय आंग्ल-मैसूर युद्ध (1790-92 ई.) :

  • टीपू का फ्रांस और तुर्की पर झुकाव था। टीपू ने 1789 ई. में त्रावण कोर के राजा पर आक्रमण कर दिया।
  • 1790 में जनरल मेड्यू ने तथा 1792 में कार्नवालिस ने श्रीरंगपट्टनम में टीपू को पराजित किया। फलस्वरूप 1792 में टीपू और अंग्रेजों के बीच श्रीरंगपट्टनम की संधि हुई।

चतुर्थ आंग्ल-मैसूर युद्ध (1799 ई.) :

  • टीपू की ब्रिटिश विरोधी गतिविधियों के कारण वेलेजली उसे कुचलने के लिए कटिबद्ध था।
  • स्टुआर्ट ने सदासीर में तथा हेरिस ने मालवेली में उसे पराजित किया। 1799 में श्रीरंगपट्टनम में टीपू की मृत्यु हो गयी।
  • टीपू ने अपनी राजधानी श्रीरंगपट्टनम् में ’स्वतंत्रता का वृक्ष‘ लगवाया व साथ ही ’जैकोबिन क्लब‘ का सदस्य बना।
  • उसके पश्चात अंग्रेजों ने मैसूर में वाडियार वंश की पुनः स्थापना की।

आंग्ल-मराठा युद्ध

प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध (1775-82 ई.) :

  • 1775 में रघुनाथ राव और अंग्रेजों के बीच सूरत की संधि हुई। इस संधि के अनुसार रघुनाथ राव को पेशवा बनना था तथा कम्पनी को सालसेट तथा बेसीन मिलने थे।
  • अंग्रेज तथा रघुनाथ राव ने मिलकर अरास के युद्ध में पेशवा को पराजित किया। अंग्रेजों की कलकत्ता कौंसिल ने इसकी तीव्र आलोचना की। फलस्वरूप अंग्रेजों और पेशवा के मध्य 1776 में पूना की संधि हुई। इसके अनुसार कम्पनी ने रघुनाथ राव का साथ छोड़ दिया।
  • लेकिन अंग्रेजों और मराठों के बीच शांति स्थापित नहीं हो सकी और पेशवा की सेना ने 1778 ई. में अंग्रेजों को तेलगांव एवं बड़गांव में पराजित किया। 1779 में बड़गाव की संधि हुई इसके अंतर्गत अंग्रेजों को मराठों के प्रदेश वापस करने थे। लेकिन अंग्रेजों ने इसे नहीं माना और उनमें अनेक युद्ध हुए।
  • 1782 में महादजी सिंधिया के प्रयासों के फलस्वरूप दोनों पक्षों में सालबाई की संधि हुई और प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध समाप्त हो गया। इसके अंतर्गत सालसेट एवं एलीफैंटा अंग्रेजों को मिला तथा अंग्रेजों ने माधवराव को पेशवा मान लिया।

द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध (1803-06 ई.) :

  • आंग्ल-मराठा संघर्ष का दूसरा दौर फ्रांसीसी भय से संलग्न था। लार्ड वेलेजली ने इससे बचने के लिए समस्त भारतीय प्रान्तों को अपने अधीन करने का निश्चय किया।
  • लार्ड वेलेजली के मराठों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप की नीति और सहायक संधि थोपने के चलते द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध आरम्भ हुआ।
  • 1802 में पेशवा ने अंग्रेजों के साथ बेसीन की संधि की। जिसके अंतर्गत पेशवा ने अंग्रेजों का संरक्षण स्वीकार कर लिया। एक तरह से वह पूर्ण रूपेण अंग्रेजों पर निर्भर हो गया।
  • इससे क्रुद्ध होकर मराठा सरदारों ने अंग्रेजों को चुनौती दी।
  • इसके अंतर्गत अनेक युद्ध हुए और अंत में 1806 में होल्कर और अंग्रेजों के मध्य राजघाट की संधि हुई और युद्ध समाप्त हो गया।

तृतीय आंग्ल-मराठा युद्ध (1817-18 ई.) :

  • मराठा सरदारों द्वारा अपनी खोई हुई स्वतंत्रता की पुनः प्राप्ति तथा अंग्रेज रेजीडेंट द्वारा मराठा सरदारों पर कठोर नियंत्रण के प्रयासों के चलते यह युद्ध हुआ।
  • लार्ड हेस्टिंग्स के पिण्डारियों के विरूद्ध अभियान से मराठों के प्रभुत्व को चुनौती मिली तथा दोनों पक्षों में युद्ध आरम्भ हो गया।
  • 1818 ई. को बाजीराव द्वितीय ने सर जॉन मेल्कम के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। इसके बाद पेशवा का पद समाप्त कर दिया गया और पेशवा विठूर भेज दिया गया। पूना पर अंग्रेजों का अधिकार स्थापित हो गया।
  • मराठों के आत्मसम्मान की तुष्टि के लिए सतारा नामक एक छोटे राज्य का अंग्रेजों द्वारा निर्माण किया गया तथा इसे शिवाजी के वंशज को सौंप दिया गया।

भू-राजस्व व्यवस्था

  • कम्पनी द्वारा भू-राजस्व पद्धति सर्वप्रथम 1762 ई. में बर्दवान और मिदनापुर क्षेत्रों में इजारादारी प्रथा के रूप में लागू हुई जिसमें तीन वर्ष तक भूमि कर वसूलने के लिए सार्वजनिक नीलामी होती थी।
  • वारेन हेस्ग्सिं ने एक बोर्ड ऑफ रेवेन्यू का गठन कर नीलामी की अवधि पांच वर्ष (पंचशाला) 1772 ई. में की जिसे पुनः 1777 ई. में एक वर्षीय बना दिया गया और इसकी देख रेख के लिए यूरोपीय कलेक्टर नियुक्त किये गये।

स्थायी बंदोबस्त

इसे गवर्नर जनरल लार्ड कार्नवालिस, राजस्व बोर्ड के प्रधान सर जान शोर तथा अभिलेख पाल जेम्स ग्रांट ने व्यापक विचार- विमर्श के बाद लागू किया।

  • 'स्थायी बंदोबस्त' को जमींदारी, बीसवेदारी, मालगुजारी, जागीरदारी तथा इस्तमरारी आदि नामों से भी जाना जाता है।
  • आरम्भ में यह दस वर्षीय व्यवस्था के रूप में 1790 ई. में लागू किया गया था, जो 22 मार्च, 1793 ई. को स्थायी बंदोबस्त के रूप में स्थापित हुआ तथा 1 मई, 1793 में कार्नवालिस कोड का प्रथम नियम बना। कार्नवालिस को ’नागरिक सेवा का जनक‘ कहा जाता है।
  • यह व्यवस्था तत्कालीन ब्रिटिश भारत की कुल भूमि के 19 प्रतिशत पर लागू थी।

महालवारी व्यवस्था

  • महालवारी व्यवस्था 1822 ई. में लागू की गयी।
  • यह व्यवस्था गंगा के दोआब में, पश्चिमोत्तर प्रान्त (उ.प्र.), मध्य भारत (मध्य प्रान्त) और पंजाब में सर्वप्रथम लागू की गयी।
  • इस व्यवस्था के अंतर्गत ब्रिटिश भारत की 30 प्रतिशत भूमि थी।

रैयतवाड़ी व्यवस्था

1792 ई. में मद्रास प्रेसीडेंसी में प्रथम भूमि व्यवस्था बारामहल (मद्रास) जिले में लागू की गयी।

  • 1792 तथा 1808 ई. में यह पद्धति प्रायोगिक रूप से लागू की गयी। 1820 में टामस मुनरो तथा रीड की संस्तुतियों के आधार पर यह पद्धति मद्रास प्रेसिडेंसी में लागू की गयी।
  • 1820 में ही इसे कर्नाटक और दक्षिण भारत के अनेक क्षेत्रों में लागू किया गया।
  • इस पद्धति के अंतर्गत कम्पनी सीधा किसानों से 33 प्रतिशत भू-राजस्व वसूलती थी।

Tags:- bharat me european ka aagman objective questions in hindi, bharat mein european vyapari companiyon ka aagman kyo hua, bharat me european ka aagman objective questions in hindi pdf, advent of european in india in hindi, 16 vi shatabdi mein europe vyaparik company kis uddeshy se bharat i thi, 16 vi shatabdi mein european vyapari company kis uddeshy se bharat i thi, bharat aane wala pratham european kon tha, bharat me angrejo ka aagman

Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.