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मौर्य साम्राज्य नोट्स pdf | maurya samrajya notes Download

 मौर्य साम्राज्य (maurya samrajya)

एतिहासिक काल का प्रारम्भ

मौर्यकालीन इतिहास के स्रोत :

  • मौर्य इतिहास का उल्लेख करने वाले अन्य साहित्यिक स्रोत में चाणक्य का अर्थशात्र, क्षेमेन्द्र की 'वृहतकथा मंजरी', कल्हण की राजतरंगिणी तथा सोमदेव का 'कथासरित्सागर' आता है।

  • धार्मिक साहित्यिक स्रोत में पुराण से मौर्यकालीन इतिहास की जानकारी मिलती है।

  • बौद्ध ग्रंथों में जातक, दीघनिकाय, दीपवंश, महावंश, वंशथपकासिनी तथा दिव्यावदान से मौर्यकाल के विषय में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है।

  • जैन गंथों में भद्रबाहु के कल्पसूत्र एवं हेमचन्द्र के परिशिष्टपर्वन से मौर्यकालीन जानकारी प्राप्त होती है।

  • अशोक के वृहत शिलालेख, लघु शिलालेख, स्तभंलेख, गुहा लेख आदि।

  • रुद्रदामन का गिरनार अभिलेख।

मौर्य़ों की उत्पत्ति :

  • ब्राह्मण परम्परा के अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य की माता शूद्र जाति की मुरा नामक स्त्री थी।

  • बौद्ध परम्परा के अनुसार मौर्य 'क्षत्रिय कुल' से संबंधित थे।

  • महापरिनिब्बानसुत्त के अनुसार मौर्य पिपलिवन का शासक तथा क्षत्रिय वंश से संबंधित थे।

चद्रगुप्त मोर्य :

  • चन्द्रगुप्त 25 वर्ष की आयु में चाणक्य की सहायता से अंतिम नन्द शासक घनानंद को पराजित कर पाटलिपुत्र के सिंहासन पर बैठा।

  • विलियम जोन्स पहले विद्वान थे जिन्होंने 'सेंड्रोकोट्स' की पहचान भारतीय ग्रंथों में वर्णित चन्द्रगुप्त से की।

  • 304-5 ई.पू. या उसके आसपास बैक्ट्रिया के शासक सेल्युकस तथा चन्द्रगुप्त के बीच उत्तर - पश्चिमी भारत पर आधिपत्य के लिए एक भीषण युद्ध हुआ जिसमें सेल्युकस की हार हुई। युद्ध का निर्णय मौर्यों के पक्ष में रहा और इसकी समाप्ति के बाद दोनों के मध्य एक संधि हुई।

  • संधि की शर्तों का उल्लेख स्ट्रेबो ने किया है। सेल्युकस ने चन्द्रगुप्त को चार प्रान्त एरिया (हेरात), अराकोसिया (कंधार), जेड्रोसिया (मकरान) तथा पेरिपेनिसदई (काबुल) दिए।

  • सेल्युकस और चन्द्रगुप्त के बीच वैवाहिक संबंध स्थापित हुआ।

  • चन्द्रगुप्त ने सेल्युकस को 500 हाथी उपहार में दिए।

  • सेल्युकस ने चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में अपना एक राजदूत मेगास्थनीज भेजा।

  • चन्द्रगुप्त ने अपने साम्राज्य पर राजधानी पाटलिपुत्र से शासन किया जिसे यूनानी और लैटिन लेखकों ने पालिबोथ्रा, पालिबोत्रा एवं पालिमबोथ्रा नामों से उल्लिखित किया है।

  • जैन परम्परा के अनुसार अपने जीवन के अंतिम दिनों में चन्द्रगुप्त ने जैन धर्म स्वीकार कर लिया और अपने पुत्र बिन्दुसार के पक्ष में सिंहासन छोड़ दिया। जैन संत भद्रबाहु के साथ वह मैसूर के निकट श्रवणबेलगोला (कर्नाटक) चला गया जहां एक सच्चे जैन मुनि की तरह उपवास के द्वारा शरीर त्याग दिया।

  • चन्द्रगुप्त मौर्य के जीवन के अंतिम समय में मगध में 12 वर्षों तक भीषण अकाल पड़ा।

बिन्दुसार :

  • चन्द्रगुप्त मौर्य की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र बिन्दुसार उसका उत्तराधिकारी हुआ।

  • बिन्दुसार ने अपने बड़े पुत्र सुसीम को तक्षशिला का तथा अशोक को उज्जैनी का राज्यपाल नियुक्त किया था।

  • दिव्यावदान के अनुसार उत्तरापथ की राजधानी तक्षशिला (पाकिस्तान) में विद्रोह हुआ जिसे शांत करने के लिए बिन्दुसार ने अपने पुत्र अशोक को भेजा था।

  • यूनानी शासक एण्टियोकस ने बिन्दुसार के दरबार में डाइमेकस नामक राजदूत भेजा था।

  • मिस्र के राजा टालेमी द्वितीय फिलाडेल्कस ने डाइनोसियस को बिन्दुसार के दरबार में भेजा था।

  • बिन्दुसार आजीवक सम्प्रदाय का अनुयायी था।

अशोक :

  • अशोक के प्रारम्भिक जीवन के बारे में अभिलेखों से कोई जानकारी नहीं मिलती है। बौद्ध ग्रंथों के अनुसार उसकी माता का नाम सुभद्रांगी था।

 

अशोक के अभिलेख

शिलालेख

स्थान

लिपि

शाहबाजगढ़ी

पेशावर (पाक)

खरोष्ठी

मानसेहरा

मानसेहरा (हजारा जि.)

खरोष्ठी

कलसी

देहरादून (उत्तरांचल)

ब्राह्मी

गिरनार

जूनागढ़ (गुजरात)

ब्राह्मी

एर्रगुड़ी

कुर्नूल (आंध्र प्रदेश)

ब्राह्मी

धौली

पुरी (उड़ीसा)

ब्राह्मी

जौगढ़

गंजाम (आंध्र प्रदेश)

ब्राह्मी

सोपारा

थाणे (महाराष्ट्र)

ब्राह्मी

  • अशोक की रानियों में महादेवी, तिष्यरक्षिता तथा करुवाकी का नाम आता है।

  • सिंहली परम्परा के अनुसार अशोक के पुत्र महेन्द्र एवं पुत्री संघमित्र विदिशा के श्रेष्ठी पुत्री महादेवी से उत्पन्न हुए थे।

  • अशोक के अभिलेख में उसकी एकमात्र पत्नी करुवाकी का उल्लेख मिलता है जो तीवर की माता थी।

  • सिंहली अनुश्रुति के अनुसार अशोक ने अपने 99 भाइयों की हत्या कर गद्दी प्राप्त की थी।

  • अशोक का वास्तविक राज्याभिषेक 269 ई.पू. में हुआ, हालांकि उसने 273 ई.पू. में सत्ता पर कब्जा कर लिया था।

  • कल्हण के अनुसार अशोक ने कश्मीर में 'श्रीनगर' नामक नगर की स्थापना की।

  • अशोक के शासनकाल की सबसे महत्वपूर्ण घटना 261 ई.पू. में कलिंग युद्ध था। कलिंग युद्ध के भीषण नरसंहार को देखकर अशोक इतना द्रवित हुआ कि उसने भविष्य में कभी युद्ध न करने का संकल्प लिया और दिग्विजय के स्थान पर 'धम्म विजय' की नीति को अपनाया।

  • कलिंग युद्ध तथा उसके परिणामों के विषय में अशोक के तेरहवें अभिलेख से विस्तृत सूचना प्राप्त होती है।

अभिलेख :

  • सर्वप्रथम 1750 ई. में टीफेन्थैलर महोदय ने दिल्ली में अशोक के स्तम्भ का पता लगाया था।

  • सर्वप्रथम जेम्स प्रिंसेप को 1837 ई. में अशोक के अभिलेखों को पढ़ने में सफलता प्राप्त हुई।

  • अशोक के अभिलेख आरमाइक, खरोष्ठी एवं ब्राह्मी तीनों लिपियों में पाये गये हैं।

  • लघमान लेख आरमाइक लिपि में हैं।

  • मानसेहरा एवं शाहबाजगढ़ी से खरोष्ठी लिपि के शिलालेख प्राप्त हुए हैं।

  • अशोक के अभिलेख को तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है- शिलालेख, स्तम्भलेख एवं गुहालेख।

  • शिलालेखों की संख्या 14 है जो आठ भिन्न - भिन्न स्थानों से प्राप्त किये गये हैं।

  • प्रथम शिलालेख की राजकीय पाकशाला में दो मयूरों एवं एक हिरण के अतिरिक्त सभी पशुओं की हत्या तथा सामाजिक उत्सवों पर प्रतिबंध की बात कही गयी है।

  • द्वितीय शिलालेख में समाज कल्याण से संबंधित कुछ कार्य जैसे मनुष्यों एवं पशुओं के लिए चिकित्सा, मार्ग निर्माण, कुआं खुदवाना तथा वृक्षारोपण का उल्लेख है। चोल, चेर, पांड्य, सतियपुत्त तथा ताम्रपर्णि राष्ट्रों का उल्लेख भी इस शिलालेख में है।

  • पंचम शिलालेख में धाम्म के प्रचार - प्रसार के लिए धाम्म महामात्रों की नियुक्ति का वर्णन है।

  • बारहवें शिलालेख में पुनः सम्प्रदायों के बीच सहिष्णुता बनाने का निवेदन किया गया है।

 

अशोक के लघु शिलालेख

लघु शिलालेख

स्थान

मास्की

रायचूर (आंध्रप्रदेश)

गुर्जरा

दतिया (मध्यप्रदेश)

ब्रह्मगिरी

ब्रह्मगिरी (कर्नाटक)

भाब्रू

जयपुर (राजस्थान)

अहरौरा

मिर्जापुर (उत्तरप्रदेश)

जटिंग रामेश्वर ब्रह्म

        गिरि से 3 मी. दूर (कर्नाटक)

सासाराम

सासाराम (बिहार)

रूपनाथ

जबलपुर (मध्यप्रदेश)

पालकि गुण्डु

गोविन्दमठ से 4 मी. दूर

राजुल मंडिगिरि

कुर्नूल (आंध्रप्रदेश)

गोविमठ

गोविमठ (मैसूर कर्नाटक)

सिद्धपुर

ब्रह्मगिरि (कर्नाटक)

एर्रगुडी

कर्नूल (आंध्र प्रदेश)

अशोक के विभिन्न नाम एवं उपाधि

अशोक

व्यक्तिगत नाम, उल्लेख - मास्की, गुर्जरा, नेतुर एवं उडेगोलम अभिलेख में

देवानामपियं प्रियदर्शी

राजकीय उपाधि अधिकारिक नाम

अशोकवर्द्धन

पुराण में उल्लेख

  • स्तम्भ लेख की संख्या 7 है जो 6 अलग-अलग स्थानों से मिले हैं।

  • अकबर ने कौशांबी में स्थित प्रयाग स्तम्भ लेख को इलाहाबाद के किले में स्थापित कराया।

  • दिल्ली - टोपरा तथा दिल्ली - मेरठ स्तम्भ लेख फिरोजशाह तुगलक द्वारा दिल्ली लाया गया।

लघु स्तम्भ लेख :

  • लघु स्तम्भ लेख पर अशोक की राजकीय घोषणाओं का उल्लेख है। सांची (रायसेन, मधयप्रदेश), कौशांबी (इलाहाबाद, उत्तरप्रदेश), सारनाथ (वाराणसी, उत्तरप्रदेश), रूम्मिनदेई (नेपाल), निग्लीवा (निगाली सागर, नेपाल) तथा इलाहाबाद से लघु स्तम्भ लेख मिले हैं।

  • इलाहाबाद स्तम्भ लेख को ’रानी का लेख‘ भी कहा जाता है।

अशोक और बौद्ध धर्म :

  • प्रारम्भ में अशोक ब्राह्मण धर्म में विश्वास करता था। अशोक के इष्टदेव शिव थे।

  • अभिलेखों के अनुसार अशोक के बौद्ध धर्म में दीक्षित करने का श्रेय उपगुप्त को है।

  • भाब्रु शिलालेख में अशोक ने बौद्ध, संघ और धर्म में विश्वास व्यक्त किया है।

  • अशोक का धम्म बौद्ध धर्म नहीं था।

  • तीसरे एवं सातवें स्तम्भ लेख में अशोक ने युक्त, रज्जुक तथा प्रादेशिक नामक पदाधिकारी को जनता के बीच धर्म एवं प्रचार का उपदेश करने का आदेश दिया।

 

धम्म प्रचारक

नाम

क्षेत्र

महेन्द्र तथा संघमित्र

लंका

मजफान्तिक

कश्मीर एवं गंधार

मज्झिम

हिमालय

महाधर्मरक्षित

महाराष्ट्र

रक्षित

वनवासी

सोन तथा उत्तरा

सुवर्ण भूमि

  अनुश्रुतियों के अनुसार अशोक ने 84000 स्तूपों का निर्माण करवाया था। शासनकाल के 14 वर्ष बाद 'कनकमुनि' बौद्ध स्तूप को दुगुना करवाया था।

  • बराबर पहाड़ी पर अशोक ने आजीवकों के लिए कर्ण, चोपार, सुदामा व विश्व झोपड़ी गुफा का निर्माण करवाया था।

  • पुराणों के अनुसार अशोक ने कुल 37 वर्षों तक शासन किया तथा उसके बाद कुणाल गद्दी पर बैठा। दिव्यावदान में उसे 'धर्मविवर्धान' कहा गया है।

  • बृहद्रथ मौर्य वंश का अंतिम शासक था।

मौर्य प्रशासन :

  • मौर्य प्रशासन तंत्र की झलक हमें प्रमुखतया मेगास्थनीज के इंडिका, कौटिल्य के अर्थशात्र और अशोक के अभिलेखों से मिलती हैं।

  • इस काल में राजतंत्र का विकास हुआ तथा गणतंत्र का ह्रास हुआ।

 

अशोककालीन प्रान्त

प्रान्त

राजधानी

उत्तरापथ

तक्षशिला

अवन्ति राष्ट्र

उज्जयिनी

कलिंग प्रान्त

तोसली

दक्षिणापथ

सुवर्णगिरी

प्राशी या प्राची

पाटलिपुत्र

  • अर्थशात्र में शीर्षस्थ अधिकारी के रूप में 18 'तीर्थ' का उल्लेख है।

  • मौर्य साम्राज्य के अंतर्गत गुप्तचर 'महातात्यापसर्प' के अधीन काम करता था।

  • गुढ़पुरुष अर्थशात्र में वर्णित गुप्तचर थे।

  • पाटलिपुत्र में स्थित केन्द्रीय न्यायालय सर्वोच्च न्यायालय था। सम्राट सर्वोच्च न्यायाधीश होता था।

  • मेगास्थनीज के अनुसार नगर प्रशासन 30 सदस्यों के एक मंडल द्वारा किया जाता था। यह मंडल 6 समितियों में विभाजित था तथा प्रत्येक समिति में 5 सदस्य होते थे।

सामाजिक स्थिति :

  • कौटिल्य ने चतुवर्णीय सामाजिक व्यवस्था को सामाजिक संरचना का आधार माना है।

  • कौटिल्य ने शूद्रों को आर्य कहा है और इन्हें मलेच्छों से भिन्न बतलाया है।

  • मेगास्थनीज ने भारतीय समाज को सात वर्गों में विभाजित किया है-

  • स्त्रियों को पुनर्विवाह तथा नियोग की अनुमति थी। स्त्रियां प्रायः घर के अंदर रहती थीं। ऐसी स्त्रियों को कौटिल्य ने अनिष्कासिनी कहा है।

  • मेगास्थनीज ने उल्लेख किया है कि भारत में कोई दास नहीं है।

आर्थिक व्यवस्था :

  • कृषि मौर्यकाल का प्रमुख व्यवसाय था।

  • कृषि, पशुपालन एवं व्यापार को अर्थशात्र में सम्मिलित रूप से 'वार्ता' कहा गया है।

  • सीता भूमि सरकारी भूमि होती थी।

  • भूमि पर उपज का 1/4 भाग से 1/6 भाग तक होती थी।

  • राज्य की ओर से सिंचाई का पूर्ण प्रबंध था जिसे सेतुबंध कहा गया है।

  • सोहगौरा और महास्थन अभिलेख में दुर्भिक्ष के समय राज्य द्वारा अनाज वितरण का उल्लेख है।

  • कौटिल्य ने अर्थशात्र में कर्षापण, पण या धारण (चांदी निर्मित सिक्के), माषक तथा काकिणी (तांबे से निर्मित सिक्कों) का उल्लेख किया है।

मौर्य साम्राज्य का पतन के कारण :

  • दुर्बल उत्तराधाकारी, साम्राज्य विभाजन, केन्द्रीकृत व्यवस्था, आर्थिक संकट, अशोक की धार्मिक नीति, अशोक की अतिशांतिवादिता नीति, नौकरशाही का अधिकाधिक अनुत्तरदायी होना, भौतिक संस्कृति पर प्रसार।



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