लोक नीति
(Public Policy)
जनता की अनेक समस्याओं एवं माँगों के समाधान के लिए सरकार जो नीतियाँ बनाती है, लोकनीतियाँ कहलाती है। लोकनीति वह है जो सरकार वास्तव में करती है ना कि वह जो वो करना चाहती है। नीति वह माध्यम है जिसके सहारे लक्ष्यों को प्राप्त किया जाता है। नीति आवश्यकतानुरूप परिवर्तनशील है। लोकनीति के अर्थ को समझने के लिए निम्न तीन बिन्दु महत्वपूर्ण हैं -
1. लोकनीति प्रधानत सरकारी क्षेत्र से सम्बद्ध है। गैर सरकारी क्षेत्र इससे प्रभावित हो सकते है और इसे प्रभावित कर सकते है।
2. नीतियाँ मूलतः मार्गदर्शक है जो योजना बनाने, संविधान के अनुरूप कार्य करने तथा वांछित लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता प्रदान करती है।
3. नीतियाँ सकारात्मक व नकारात्मक दोनों हो सकती हैं। सकारात्मक नीतियाँ वे है जिसमे ंकिसी प्रश्न या समस्या में सरकारी हस्तक्षेप शामिल हो सकता है, नकारात्मक नीति सरकारी अहस्तक्षेप की नीति है।
अतः लोकनीति सरकार के नियमों का ऐसा समूह है जो जनता के कल्याण से सम्बंधित है।
लोकनीति के प्रकार -
सामान्यतः लोकनीति को निम्नलिखित श्रैणियाँ में विभाजित किया जा सकता है।
तात्विक (सारगत) नीतियाँ - ये समाज के सामान्य कल्याण एवं विकास से सम्बंधित हैं, जैसे शिक्षा का प्रबंध एवं रोजगार के अवसर, आर्थिक स्थिरीकरण, विधि एवं व्यवस्था का लागु होना।
नियंत्रक नीतियाँ - इनका सम्बन्ध व्यापार, व्यवसाय सुरक्षा उपाय एवं जनोपयोगी सेवाओं के नियंत्रण से है।
वितरक नीतियाँ - ये समाज के विशिष्ट वर्गों के लिए होती है, जिसमें प्रमुख रूप से कल्याणकारी कार्यक्रम शामिल रहते है।
पुनः वितरक नीतियाँ - नीतियों की पुनः व्यवस्था से सम्बंधित होती है।
पूँजीकरण नीतियाँ - इनके अन्तर्गत राज्यों एवं स्थानीय सरकारों को संघीय सरकार द्वारा आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है।
नीति निर्माण में सहायक संस्थाओं के रूप में संविधान, संसद, मंत्रिमण्डल, योजना आयोग, राष्ट्रीय विकास परिषद, न्यायपालिका, दबाव समूह, राजनैतिक दल, परामर्शदात्री समितियाँ, मीडिया एवं जन संचार के माध्यम इत्यादि प्रभाव भूमिका निभाते हैं।
लोकनीति की विशेषताएँ -
लोकनीति के सूत्रीकरण एवं कार्यान्वयन में क्रिया विधि का एक सममित ढाँचा सम्मिलित है, इसके लिए महत्वपूर्ण सरकारी अभिकरणों, जैसे - कार्यपालिका, विधायिका, नौकरशाही एवं न्यायपालिका के बीच घनिष्ठ सम्बंध आवश्यक हैं।
यह सामूहिक रूप से अधिकारियों एवं कर्मचारियों के क्रिया -कलापों की प्रक्रिया है।
यह भविष्योन्मुख होती है व दिशा-निर्देश रेखांकित करती है। लोकनीति परिणामोन्मुख होती है।
लोकनीति के 5 चरण होते हैं-
1. कार्य-सूची निश्चित करना।
2. नीति-निर्माण
3. निर्णय करना।
4. नीति-क्रियान्वयन
5. नीति-मूल्यांकन
लोकनीति के क्रियान्वयन में अनेक बाधाएँ आती है इनमें त्रुटिपूर्ण लोकनीति, क्रियान्वयन अधिकारियों का जनता की समस्याओं मनोवृति एवं परिस्थितियों से परिचित ना होना, विशिष्ट वर्गों की प्रभावशाली भूमिका व हस्तक्षेप जिससे उस नीति का अधिकाधिक फायदा ये प्रभावशाली लोग स्वयं ही उठाते हैं। भ्रष्टाचार, सरकारी नीतियों व योजनाओं के बारे में जागरूकता की कमी, आंतरिक असुरक्षा की भावना, बुनियादी एवं आधारभूत ढाँचे का अभाव, नीति प्रपत्र में अस्पष्टता, लक्ष्यों का अनिश्चित रूप से परिभाषित होना, अपर्याप्त बजट, परम्परागत तकनीक का प्रयोग, सटीक आंकड़ों का उपलब्ध नहीं होना, मूल्यांकन हेतु प्रयुक्त तकनीकों तथा विधियों में सामंजस्य का अभाव महत्वपूर्ण है।
लोकनीतियों के मूल्यांकन को प्रभावी बनाने के लिए राजनैतिक इच्छाशक्ति दृढ हो, प्रशासनिक अभिकरणों की क्षमता बढ़ायी जाये
सूचना प्रौद्योगिकी का अधिकाधिक उपयोग हो, भ्रष्टाचार कम से कम हो, जनता की भागीदारी आदि आवश्यक है।
Post a Comment
0 Comments