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संघीय व्यवस्थापिका notes | sanghiy vyavasthapika notes

 संघीय व्यवस्थापिका (sanghiy vyavasthapika)

राज्यसभा (Council of State)

राज्यसभा भारतीय संसद का उच्च सदन, द्वितीय सदन और स्थायी सदन है।

राज्यसभा राज्यों का प्रतिनिधित्व करती है।

राज्यसभा के सदस्य कुल 250 (238 + 12) हो सकते हैं। वर्तमान समय में राज्यसभा के सदस्यों की संख्या 245 हैं। जिनमें से 233 (229 + 4) सदस्य निर्वाचित किये जाते हैं व 12 सदस्य (कला, साहित्य, विज्ञान और समाज सेवा से सम्बन्धित प्रमुख व्यक्ति) भारतीय राष्ट्रपति के द्वारा मनोनित किये जाते हैं।

राज्यसभा की यह सदस्य संख्या 2026 तक यही रहेगी।

राज्यसभा का सदस्य बनने के लिए न्यूनतम आयु 30 वर्ष होनी चाहिए।

राज्यसभा के सदस्य आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली की एकल संक्रणीय मत पद्धति के अनुसार चुने जाते हैं।

राज्यसभा के सदस्यों का चुनाव राज्य विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्यों के द्वारा किया जाता है।

राजस्थान से राज्यसभा के लिए 10 सदस्य चुने जाते हैं।

राजस्थान से अब तक राज्यसभा के लिए मनोनित सदस्य नारायण सिंह माणकलाव (पहले व एकमात्र) थे।

राज्यसभा के एक सदस्य का कार्यकाल 6 वर्ष होता है तथा 1/3 (एक तिहाई) सदस्य प्रति दूसरे वर्ष नये चुने जाते हैं।

राज्यसभा एक स्थायी सदन है जिसको किसी के द्वारा भंग नहीं किया जा सकता।

राज्यसभा का पदेन सभापति उपराष्ट्रपति होता हैं।

राज्यसभा राज्यों का सदन होने के कारण राज्यों के हितो का प्रतिनिधित्व करती है।

राज्यसभा अपने 2/3 बहुमत से राज्यसूची के किसी भी विषय को राष्ट्रीय महत्व का घोषित करने हेतु प्रस्ताव रख सकती है। (अनुच्छेद 249)

राज्यसभा नई अखिल भारतीय सेवाएं सृजन करने हेतु प्रस्ताव रख सकती है।(अनुच्छेद 312)

राज्यसभा धन विधेयक को पास करने से 14 दिन के लिए रोक सकती है।

राज्यसभा लोकसभा के कार्यभार को हल्का करती है।

लोकसभा:

लोकसभा भारतीय संसद का प्रथम, निम्न और अस्थाई (Provisional) सदन है।

लोकसभा में भारतीय जनता को प्रतिनिधित्व दिया गया हैं।

लोकसभा में कुल 552 (530 + 20 + 2) सदस्य हो सकते हैं।

वर्तमान समय में लोकसभा के 545 सदस्य है जिनमें से 543 निर्वाचित तथा 2 सदस्य एंग्लो इण्डियन समुदाय से राष्ट्रपति द्वारा मनोनित किये जाते हैं।

लोकसभा का सदस्य बनने के लिए न्यूनतम आयु 25 वर्ष होनी चाहिए।

लोकसभा के सदस्यों का चुनाव जनता के द्वारा प्रत्यक्ष रूप से वयस्क मताधिकार से किया जाता है।

राजस्थान से लोकसभा के लिए 25 सदस्य चुने जाते हैं।

लद्दाख (काश्मीर) सबसे बड़ा लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र है।

चान्दनी चौक (दिल्ली) सबसे छोटा लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र है।

भारत में मताधिकार की न्यूनतम आयु वर्तमान समय में 18 वर्ष है।

लोकसभा की कार्यवाही का संचालन करने के लिए लोकसभा के सदस्यों में से ही लोकसभा अध्यक्ष/स्पीकर का चुनाव किया जाता है। (अनुच्छेद 93)

लोकसभा अध्यक्ष, अध्यक्ष के रूप में कोई शपथ नहीं लेता है।

गणेश वासुदेव मावलंकर भारतीय लोकसभा के पहले अध्यक्ष थे तथा 16वीं लोकसभा के वर्तमान अध्यक्षा सुमित्रा महाजन है।

गणेश वासुदेव मावलंकर को भारतीय लोकसभा का पिता कहा जाता है। यह पहले व एकमात्र अध्यक्ष है जिन्हें हटाने के लिये महाभियोग (Impeachment) प्रस्ताव चलाया गया था, जिसमें मावलंकर विजयी हुये।

शक्तियों की दृष्टि से राज्यसभा की तुलना में लोकसभा ज्यादा शक्तिशाली है।

धन विधेयक पहले लोकसभा मे प्रस्तुत किया जाता हैं (राष्ट्रपति की सहमति से)।

धन विधेयक को प्रमाणित करने का अधिकार लोकसभा अध्यक्ष को होता हैं।

संसद के दोनों सदनों में अर्थात् राज्यसभा व लोकसभा में किसी साधारण विधेयक पर मतभेद होने पर राष्ट्रपति के द्वारा संसद का संयुक्त अधिवेशन बुलाया जा सकता हैं।

संसद के संयुक्त अधिवेशन की अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष द्वारा की जाती है।

भारत में अब तक संसद के 3 संयुक्त अधिवेशन बुलाए जा चुके हैं।

लोकसभा का कार्यकाल अधिकतम 5 वर्ष हैं। लेकिन अनिश्चित होता हैं।

लोकसभा को निश्चित समय से पूर्व प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति के द्वारा भंग किया जा सकता हैं।

भारत में संसद व उसकी कार्य प्रणाली हमने इंग्लैण्ड से ग्रहण की है।

संसद के द्वारा बनाये गये कानूनों को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी जा सकती हैं और कोई भी कानून संविधान का उल्लंघन करने पर न्यायालय द्वारा अमान्य घोषित किया जा सकता है।

न्यायालय की यह शक्ति न्यायिक पुनरावलोकन के नाम से जानी जाती हैं।

महत्त्वपूर्ण शब्दावलियाँ

1. शून्य काल - संसद के दोनों सदनों में प्रश्न काल के ठीक बाद के समय को शून्य काल क हा जाता है। यह 12 बजे प्रारम्भ होता है और एक बजे दिन तक चलता है। शून्यकाल का लोकसभा या राज्यसभा की प्रक्रिया तथा संचालन नियम में कोई उल्लेख नहीं है। इस काल अर्थात् 12 बजे से 1 बजे तक के समय को शून्यकाल का नाम समाचारपत्रों द्वारा दिया गया। इस काल के दौरान सदस्य अविलम्बनीय महत्त्व के मामलों को उठाते हैं तथा उस पर तुरंत कार्यवाही चाहते हैं।

2. सदन का स्थगन - सदन के स्थगन द्वारा सदन के काम-काज को विनिर्दिष्ट समय के लिए स्थगित कर दिया जाता है। यह कुछ घण्टे, दिन या सप्ताह का भी हो सकता है, जबकि सत्रावसान द्वारा सत्र की समाप्ति होती है। विघटन - विघटन केवल लोकसभा का ही हो सकता है। इससे लोकसभा का अन्त हो जाता है।

3. अनुपूरक प्रश्न - सदन में किसी सदस्य द्वारा अध्यक्ष की अनुमति से किसी विषय, जिसके सम्बन्ध में उत्तर दिया जा चुका है, के स्पष्टीकरण हेतु अनुपूरक प्रश्न पूछने की अनुमति प्रदान की जाती है।

4. तारांकित प्रश्न - जिन प्रश्नों का उत्तर सदस्य तुरत सदन में चाहता है उसे तारांकित प्रश्न कहा जाता है। तारांकित प्रश्नों का उत्तर मौखिक दिया जाता है तथा तारांकित प्रश्नों के अनुपूरक प्रश्न भी पूछे जा सकते हैं। इस प्रश्न पर तारा लगाकर अन्य प्रश्नों से इसका भेद किया जाता है।

5. अतारांकित प्रश्न - जिन प्रश्नों का उत्तर सदस्य लिखित चाहता है, उन्हें अतारांकित प्रश्न कहा जाता है। अतारांकित प्रश्न का उत्तर सदन में नहीं दिया जाता और इन प्रश्नों के अनुपूरक प्रश्न नहीं पूछे जाते।

6. अल्प सूचना प्रश्न - जो प्रश्न अविलम्बनीय लोक महत्त्व का हो तथा जिन्हें साधारण प्रश्न के लिए निर्धारित दस दिन की अवधि से कम सूचना देकर पूछा जा सकता है, उन्हें अल्प-सूचना प्रश्न कहा जाता है।

7. स्थगन प्रस्ताव - स्थगन प्रस्ताव पेश करने का मुख्य उद्देश्य किसी अविलम्बनीय लोक महत्त्व के मामले की ओर सदन का ध्यान आकर्षित करना है। जब इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया जाता है, तब सदन अविलम्बनीय लोक महत्त्व के निश्चित मामले पर चर्चा करने के लिए सदन का नियमित कार्य रोक देता है। इस प्रस्ताव को पेश करने के लिए न्यूनतम 50 सदस्यों की स्वीकृति आवश्यक है।

8. संचित निधि (Consolidated/Fund) - संविधान के अनुच्छेद 266 में संचित निधि का प्रावधान है। संचित निधि से धन संसद में प्रस्तुत अनुदान माँगों के द्वारा ही व्यय किया जाता है। राज्यों को करों एवं शुल्कों में से उनका अंश देने के बाद जो धन बचता है, निधि में डाल दिया जाता है। राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक आदि के वेतन तथा भत्ते इसी निधि पर भारित होते हैं।

9. आकस्मिक निधि (Contingency Fund) - संविधान के अनुच्छेद 267 के अनुसार भारत सरकार एक आकस्मिक निधि की स्थापना करेगी। इसमें जमा धनराशि का व्यय विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार किया जाता है। विशेष परिस्थितियों में राष्ट्रपति अग्रिम रूप से इस निधि से धन निकाल सकते हैं।

10. आधे घंटे की चर्चा - जिन प्रश्नों का उत्तर सदन में दे दिया गया हो, उन प्रश्नों से उत्पन्न होनेवाले मामलों पर चर्चा लोकसभा में सप्ताह में तीन दिन, यथा-सोमवार, बुधवार तथा शुक्रवार को बैठक के अंतिम आधे घंटे में की जा सकती है। राज्यसभा में ऐसी चर्चा किसी दिन, जिसे सभापति नियत करे, सामान्यतः 5 बजे से 5.30 बजे के बीच की जा सकती है। ऐसी चर्चा का विषय पर्याप्त लोक महत्त्व का होना चाहिए तथा, विषय हाल ही के किसी तारांकित या अल्प सूचना का प्रश्न रहा हो और जिसके उत्तर के किसी तथ्यात्मक मामले का स्पष्टीकरण आवश्यक हो। ऐसी चर्चा को उठाने की सूचना कम से कम तीन दिन पूर्व दी जानी चाहिए।

11. अल्पकालीन चर्चाएँ - भारत में इस प्रथा की शुरुआत 1953 ई. के बाद हुई। इसमें लोकमहत्त्व के प्रश्न पर सदन का ध्यान आकर्षित किया जाता है। ऐसी चर्चा के लिए स्पष्ट कारणों सहित सदन के महासचिव को सूचना देना आवश्यक होता है। इस सूचना पर कम से कम दो अन्य सदस्यों के हस्ताक्षर होना भी आवश्यक है।

12. विनियोग विधेयक - विनियोग विधेयक में भारत की संचित निधि पर भारित व्यय की पूर्ति के लिए अपेक्षित धन तथा सरकार के खर्च हेतु अनुदान की माँग शामिल होती है। भारत की संचित निधि में से कोई धन विनियोग विधेयक के अधीन ही निकाला जा सकता है।

13. लेखानुदान - जैसा कि विदित है, विनियोग विधेयक के पारित होने के बाद ही भारत की संचित निधि से कोई रकम निकाली जा सकती है, किन्तु सरकार को इस विधेयक के पारित होने के पहले भी रुपयों की आवश्यकता हो सकती है। अनुच्छेद-116 (क) के अन्तर्गत लोकसभा लेखा-अनुदान (टवजम वद ।बबवनदज) पारित कर सरकार के लिए एक अग्रिम राशि मंजूर कर सकती है, जिसके बारे में बजट-विवरण देना सरकार के लिए सम्भव नहीं है।

14. वित्त विधेयक (Finance Bill) - संविधान का अनुच्छेद -112 वित्त विधेयक को परिभाषित करता है। जिन वित्तीय प्रस्तावों को, सरकार आगामी वर्ष के लिए सदन में प्रस्तुत करती है, उन वित्तीय प्रस्तावों को मिलाकर वित्त विधेयक की रचना होती है। सामान्यतः वित्त विधेयक उस विधेयक को कहते हैं, जो राजस्व या व्यय से सम्बन्धित होता है। संसद में प्रस्तुत सभी वित्त विधेयक धन विधेयक नहीं हो सकते। वित्त विधेयक, धन विधेयक है या नहीं, इसे प्रमाणित करने का अधिकार केवल लोकसभा अध्यक्ष को है।

15. धन विधेयक - संसद में राजस्व एकत्र करने अथवा अन्य प्रकार से धन से संबंद्ध विधेयक को धन विधेयक कहते हैं। संविधान के अनु0. 110 (1) के उपखण्ड (क) से (छ) तक में उल्लेखित विषयों से सम्बन्धित विधेयकों को धन विधेयक कहा जाता है। धन विधेयक केवल लोकसभा में ही पेश किया जाता है। धन विधेयक को राष्ट्रपति पुनः विचार के लिए लौटा नहीं सकता है।

16. अनुपूरक अनुदान - यदि विनियोग विधेयक द्वारा किसी विशेष सेवा पर चालू वर्ष के लिए व्यय किये जाने के लिए प्राधिकृत कोई राशि अपर्याप्त पायी जाती है या वर्ष के बजट में उल्लेखित न की गई, और किसी नयी सेवा पर खर्च की आवश्यकता उत्पन्न हो जाती है, तो राष्ट्रपति एक अनुपूरक अनुदान संसद के समक्ष पेश करवाएगा। अनुपूरक अनुदान और विनियोग विधेयक दोनों के लिए एक ही प्रक्रिया विहित की गई है।

17. बजट सत्र - यह सत्र फरवरी के दूसरे या तीसरे सप्ताह के सोमवार को आरंभ होता है। इसे बजट सत्र इसलिए कहते हैं कि इस सत्र में आगामी वित्तीय वर्ष का अनुमानित बजट प्रस्तुत, विचारित और पारित किया जाताहै।

18. सामूहिक उत्तरदायित्व - अनु. - 75(3) के अनुसार मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होगी। इसका अभिप्राय यह है कि वह अपने पद पर तब तक बनी रह सकती है जब तक उसे निम्न सदन अर्थात् लोकसभा के बहुमत का समर्थन प्राप्त है। लोकसभा का विश्वास खोते ही मंत्रिपरिषद को तुरंत पद-त्याग करना होगा।

19. कटौती प्रस्ताव - सत्तापक्ष द्वारा सदन की स्वीकृति के लिए प्रस्तुत अनुदान की माँगों में से किसी भी प्रकार की कटौती के लिए विपक्ष द्वारा रखे गये प्रस्ताव को ‘कटौती प्रस्ताव’ कहा जाता है। सरकार की नीतियों की अस्वीकृति को दर्शाने के लिए विपक्ष द्वारा प्रायः एक रु. की कटौती का प्रस्ताव किया जाता है जिसका अर्थ यह भी होता है कि प्रस्ताव माँग के मुद्दों का स्पष्ट उल्लेख किया जाए।

20. अविश्वास प्रस्ताव - अविश्वास प्रस्ताव सदन में विपक्षी दल के किसी सदस्य द्वारा रखा जाता है। प्रस्ताव के पक्ष में कम-से-कम 50 सदस्यों का होना आवश्यक है तथा प्रस्ताव प्रस्तुत किए जाने के 10 दिन के अन्दर इस पर चर्चा होना भी आवश्यक है। चर्चा के बाद अध्यक्ष मतदान द्वारा निर्णय की घोषणा करता है।

21. मूल प्रस्ताव - मूल प्रस्ताव अपने आप में सम्पूर्ण प्रस्ताव होता है, जो सदन के अनुमोदन के लिए पेश किया जाता है। मूल प्रस्ताव को इस तरह से बनाया जाता है कि उससे सदन के फैसले की अभिव्यक्ति हो सके। निम्नलिखित प्रस्ताव मूल प्रस्ताव होते हैं -

(1) राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव।

(2) अविश्वास प्रस्ताव - इस प्रस्ताव के माध्यम से सदन का कोई सदस्य मंत्रिपरिषद में अपना अविश्वास व्यक्त करता है और यदि प्रस्ताव पारित कर दिया जाता है, तो मंत्रिपरिषद को त्यागपत्र देना पड़ता है।

(3) लोकसभा के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष या राज्यसभा के उपसभापित के निर्वाचन के लिए या हटाने के लिए प्रस्ताव।

(4) विशेषाधिकार प्रस्ताव यह प्रस्ताव संसद के किसी सदस्य द्वारा पेश किया जाता है, जब उसे यह प्रतीत होता है कि मंत्रिपरिषद के किसी सदस्य ने संसद में झूठा तथ्य प्रस्तुत करके सदन के विशेषाधिकार का उल्लंघन किया है।

22. अध्यादेश - राष्ट्रपति अथवा राज्यपाल संसद अथवा विधान मंडल के सत्रावसान की स्थिति में आवश्यक विषयों से संबंधित अध्यादेश का प्रख्यापन करते हैं। अध्यादेश में निहित विधि संसद अथवा विधानमंडल के अगले सत्र की शुरुआत के छह सप्ताह के बाद प्रवर्तन योग्य नहीं रह जाती यदि संसद अथवा विधान मंडल द्वारा उसका अनुमोदन नहीं कर दिया जाता है।

23. निन्दा प्रस्ताव - निन्दा प्रस्ताव मंत्रिपरिषद् अथवा किसी एक मंत्री के विरुद्ध उसकी विफलता पर खेद अथवा रोष व्यक्त करने के लिए किया जाता है। निन्दा प्रस्ताव में निन्दा के कारणों का उल्लेख करना आवश्यक होता हैं। निन्दा प्रस्ताव नियमानुसार है या नहीं इसका निर्णय अध्यक्ष करता है।

24. धन्यवाद प्रस्ताव - राष्ट्रपति के अभिभाषण के बाद संसद की कार्यमंत्रणा समिति की सिफारिश पर तीन-चार दिनों तक धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा होती है। चर्चा प्रस्तावक द्वारा आरम्भ होती है तथा उसके बार प्रस्तावक का समर्थक बोलता है। इस चर्चा में राष्ट्रपति के नाम का उल्लेख नहीं किया जाता है, क्योंकि अभिभाषण की विषय वस्तु के लिए सरकार उत्तरदायी होती है। अन्त में धन्यवाद प्रस्ताव मतदान के लिए रखा जाता है तथा उसे स्वीकृत किया जाता है।

25. अविश्वास प्रस्ताव - बहुमत का समर्थन प्राप्त होने में सन्देह होने की स्थिति में सरकार द्वारा लोकसभा में विश्वास प्रस्ताव लाया जाता है। इस प्रस्ताव का उद्देश्य यह सिद्ध करना होता है कि सदन का बहुमत उसके साथ है। विश्वास प्रस्ताव के पारित न होने की दशा में सरकार को त्यागपत्र देना आवश्यक हो जाता है।

26. बैक बेंचर (Back Bencher) - सदन में आगे के स्थान प्रायः मंत्रियों, संसदीय सचिवों तथा विरोधी दल के नेताओं के लिए आरक्षित रहते हैं। गैर-सरकारी सदस्यों के लिए पीछे का स्थान नियत रहता है। पीछे बैठने वाले सदस्यों को ही बैक बेंचर कहा जाता है।

27. गुलेटिन - गुलेटिन वह संसदीय प्रक्रिया है जिसमें सभी माँगों को जो नियत तिथि तक न निपटायी गई हो बिना चर्चा के ही मतदान के लिए रखा जाता है।

28.काकस (Caucus) - किसी राजनीतिक दल अथवा गुट के प्रमुख सदस्यों की बैठक को “काकस” कहते हैं। इन प्रमुख सदस्यों द्वारा तय की गई नीतियों से ही पूरा दल संचालित होता है।

29. त्रिशंकु संसद - आम चुनाव में किसी राजनीतिक दल को स्पष्ट बहुमत न मिलने की स्थिति में त्रिशंकु संसद की रचना होती है। त्रिशंकु संसद की स्थिति में दल-बदल जैसे कुप्रवृत्तियों को प्रोत्साहन मिलता है। देश में नौवीं, दसवीं, ग्यारहवीं एवं बारहवीं लोकसभा की यही स्थिति रही।

30. न्यायिक पुनर्विलोकन - भारत में न्यायपालिका को न्यायिक पुनर्विलोकन की शक्ति प्राप्त है। न्यायिक पुनर्विलोकन के अनुसार न्यायालयों को यह अधिकार प्राप्त है कि यदि विधानमंडल द्वारा पारित की गयी विधियाँ अथवा कार्यपालिका द्वारा दिए गए आदेश संविधान के प्रतिकूल हैं, तो वे उन्हें निरस्त घोषित कर सकते हैं।

31. गणपूर्त्ति (Quorum) - सदन में किसी बैठक के लिए गणपूर्ति अध्यक्ष सहित कुल सदस्य संख्या का दसवाँ भाग होती है। बैठक शुरू होने के पूर्व यदि गणपूर्ति नहीं है तो गणपूर्ति घंटी बजाई जाती है। अध्यक्ष तभी पीठासीन होता है, जब गणपूर्ति हो जाती है।

32. प्रश्न-काल - दोनों सदनों में प्रत्येक बैठक के प्रारम्भ के एक घंटे तक प्रश्न किये जाते हैं और उनके उत्तर दिए जाते हैं। इसे प्रश्नकाल कहा जाता है। प्रश्नकाल के दौरान सदस्यों को सरकार के कार्यों पर आलोचन-प्रत्यालोचन का समय मिलता है। इसके दो लाभ हैं - एक तो सरकार जनता की कठिनाइयों एवं अपेक्षाओं के प्रति सजग रहती है। दूसरे, इस दौरान सरकार अपनी नीतियों एवं कार्यक्रमों की जानकारी सदन को देती है।

33. दबाव समूह (Pressure Group) - व्यक्तियों के ऐसे समूह जिनके हित समान होते हैं, ‘दबाव समूह’ कहे जाते हैं। ये ग्रुप अपने हित के लिए शासन-तंत्र पर विभिन्न प्रकार से दबाव बनाते हैं।

34. पंगु सत्र (Lameduck Session) - एक विधानमंडल के कार्यकाल की समाप्ति तथा दूसरे विधानमंडल के कार्यकाल की शुरुआत के बीच के काल में सम्पन्न होने वाले सत्र को ‘पंगु सत्र’ कहा जाता हैं। यह व्यवस्था केवल अमेरिका में है।

35. सचेतक (Whip) - राजनीतिक दल में अनुशासन बनाए रखने के लिए सचेतक की नियुक्ति प्रत्येक संसदीय दल द्वारा की जाती है। किसी विषय विशेष पर मतदान होने की स्थिति में सचेतक अपने दल के सदस्यों को मतदान विषयक निर्देश देता है। सचेतक के निर्देशों के विरूद्ध मतदान करने वाले सदस्य के विरूद्ध दल-बदल निरोध कानून के अन्तर्गत कार्यवाही की जाती है।

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