दिल्ली सल्तनत (Delhi Saltanat)
भारत में इस्लामिक शासन प्रारम्भ
पृष्ठभूमि
दिल्ली से होने वाले तुर्कों के शासन को दिल्ली सल्तनत की संज्ञा दी गयी और 13-16वीं शताब्दी तक उत्तरी भारत के इतिहास को साधारणतया इसी नाम से पुकारा जाता है।
1206 से 1290 तक उत्तरी भारत के कुछ भागों पर जिन तुर्कों शासकों ने शासन किया उन्हें फारसी इतिहासकारों ने मुइज्जी, कुत्वी, शम्सी तथा बल्बनी वर्गों में बांटा है।
शम्सीउद्दीन इल्तुतमिश इल्बारी तुर्क था, जबकि कुतुबुद्दीन ऐबक इल्बारी तुर्क नहीं था।
बलबल ने स्वयं को इल्बारी तुर्क कहा है।
हबीबुल्लाह ने आरम्भिक तुर्क शासन को 'मामूलक' शासन कहा है।
कुतुबुद्दीन ऐबक (1206-1210) :
1206 में तुर्की गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक, मुहम्मद गोरी का उत्तराधिकारी बना।
उसने सुल्तान का पद धारण न कर 'मलिक' तथा 'सिपहसालार' के पद से शासन किया।
उसका राज्याभिषेक लाहौर में हुआ।
उसे भारत का प्रथम मुस्लिम शासक भी माना जाता है।
अपनी उदारता तथा दानी स्वभाव के कारण वह लाखबख्श तथा 'हातिम द्वितीय' के नाम से भी जाना जाता है।
उसके दरबार में अदब-उल हर्ष के लेखक फख-ए-मुदब्बिर तथा ताज-उस-मासिर के लेखक हसन निजामी रहते थे।
'कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद' तथा 'अढाई दिन का झोपड़ा' के निर्माण का श्रेय ऐबक को है।
शेख ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की स्मृति में कुतुबमीनार का निर्माण कार्य इसी समय आरम्भ हुआ लेकिन इल्तुतमिश के समय पूरा हुआ।
1210 में 'चौगान' (पोलो) खेलते समय घोड़े से गिरने के कारण ऐबक की मृत्यु हो गई।
ऐबक का मकबरा लाहौर में है।
आरामशाह (1210-1211) :
ऐबक की मृत्यु के बाद आरामशाह शासक बना।
इल्तुतमिश ने दिल्ली के समीप 'जूद' में आरामशाह को पराजित किया।
शम्सुद्दीन इल्तुतमिश :
वह पहले बदायूं का अमीर था।
पहला मकबरा निर्मित करने का श्रेय इल्तुतमिश को दिया जाता है।
उसे तुर्कों द्वारा उत्तर भारत की विजयों का वास्तविक संगठनकर्ता माना जाता है।
वह इल्बारी जनजाति का तुर्क था।
तराईन के मैदान में इल्तुतमिश ने एल्दौज को पराजित किया।
1221 में मंगोल आक्रमणकारी चंगेज खां द्वारा मंगबरनी का पीछा करते हुए सिंध को जीतकर लाहौर तक पहुंच जाने पर इल्तुतमिश ने अपनी वास्तविक स्थिति का आकलन करते हुए मंगोल खतरे को टालने हेतु मंगबरनी को दिल्ली में शरण नहीं दी।
उसने 1226 में रणथम्भौर, 1227 में मन्दौर, 1231 में ग्वालियर, 1234-35 में उज्जैन तथा भिलसा के शासकों को पराजित किया।
'बनियान' आक्रमण उसका अंतिम सैन्य अभियान था।
उसने 40 दासों का एक नया विश्वसनीय दल गठित किया जो तुर्कान-ए- चिहालगानी के नाम से जाना जाता है।
इक्तादारी, मुद्रा प्रणाली तथा सैन्य संगठन में उसने महत्वपूर्ण योगदान दिया।
उसने अरबी प्रथा के आधार पर मुद्रा प्रणाली चलायी।
जीतल तथा टंका क्रमशः तांबे एवं चांदी के सिक्के थे।
उसने बगदाद के खलीफा अल-मुस्तनसिर बिल्लाह से खिल्लत का प्रमाण पत्र प्राप्त किया।
उसने राजधानी लाहौर से दिल्ली स्थानांतरित की।
उसके दरबार में मिन्हाज - उल - सिराज एवं मलिक ताजुद्दीन रहते थे।
उसके शासनकाल में कुतुबमीनार, राजकुमार महमूद एवं इल्तुतमिश के मकबरे का निर्माण हुआ।
रूकनुद्दीन फिरोज (1236) :
इल्तुतमिश ने अपने जीवनकाल में पुत्र नासिरुद्दीन महमूद को उत्तराधिकारी बनाया था लेकिन महमूद की अकस्मात मृत्यु के बाद उसने योग्य पुत्री रजिया को उत्तराधिकारी बनाया। परन्तु सुल्तान की मृत्यु के बाद अमीरों ने फिरोज को पदासीन कर दिया।
फिरोज के शासनकाल में वास्तविक सत्ता उसकी मां शाहतुकौन के हाथों में थी।
रजिया (1236-1240) :
वह मध्यकालीन भारत की पहली तथा अंतिम मुस्लिम महिला शासक थी।
दिल्ली के नागरिकों ने पहली बार अपने आप उत्तराधिकार के मामले का निर्णय किया था।
उसने जुनैदी (इल्तुतमिश के भूतपूर्व वजीर) के नेतृत्व में प्रान्तीय शासकों के गठबंधन को समाप्त कर दिया।
उसने लाहौर के गवर्नर याकूत खां तथा भटिंडा के गवर्नर अल्तूनिया के विद्रोहों को दबाया।
उसने अल्तूनिया से विवाह कर संयुक्त सेना का नेतृत्व करते हुए दिल्ली पर चढ़ाई की लेकिन बहराम ने उसे पराजित कर दिया।
अपने सैनिकों द्वारा परित्यक्त कर दिये जाने पर लुटेरों ने उसे मार डाला।
उसकी मृत्यु कैथल के समीप हुई।
बहरामशाह (1240-1242) :
रजिया का उत्तराधिकारी बहरामशाह एक शक्तिहीन तथा अक्षम शासक था।
उसके शासनकाल में तूर्क सरदारों ने एक नवीन पद नायब का सृजन किया।
अलाउद्दीन-मसूदशाह (1242-1246) :
इसके शासनकाल में बलबल ने नासिरुद्दीन महमूद तथा उसकी मां से मिलकर नासिरुद्दीन महमूद को शासन पर बैठाया।
नासिरुद्दीन-महमूद (1246-1266) :
सुल्तान ने बलबन को 'नायब-ए-मामलकात' के पद पर नियुक्त किया।
1253-54 के संक्षिप्त अंतकाल को छोड़कर बलबन दिल्ली सल्तनत का वास्तविक शासक बना रहा।
सुल्तान ने बलबन को 'उलुग खां' की उपाधि प्रदान की।
पूर्व में बलबन को हांसी भेज दिया गया था।
सुल्तान कुरान की नकल कर हस्तलिपियां तैयार करता था।
बलबन (1266-1287) :
बलबन के सिंहान पर बैठने के साथ ही एक शक्तिशाली केन्द्रित शासन का युग आरम्भ हुआ।
कुलीन घरानों तथा प्राचीन वंशों के व्यक्तियों से अपने को संबंधित करने के लिए बलबन ने प्रसिद्ध तुर्की योद्धा अफरासियाब का वंशज घोषित किया।
बलबन का मुख्य कार्य चहलगानी या तुर्की सरदारों की शक्ति भंग कर सम्राट की शक्ति एवं प्रतिष्ठा को बढ़ाना था। इसके लिए उसने अपने रिश्तेदार शेर खां को विष देकर मार डाला।
उसने 'लौह एवं रक्त' की नीति अपनाया।
तुर्क अमीरों के प्रभाव को कम करने के लिए बलबन ने सिज्दा (घुटने पर बैठकर सिर झुकाना) तथा पाबोस (सम्राट के सामने झुककर पांव को चुमना) की प्रथा आरम्भ की जो मूलतः इरानी एवं गैर इस्लामी था।
उसने नौरोज (फारसी) प्रथा को भी आरम्भ किया।
मृत्यु के पूर्व बलबन ने बुगरा खां को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। परन्तु बुगरा द्वारा अनिच्छा जाहिर करने पर कैखुसरो को उत्तराधिकारी बनाया गया।
बलबन ने राजत्व को दैवी संस्था मानते हुए राजा को नियामते खुदाई (ईश्वर का प्रतिनिधि) घोषित किया।
उसने सिक्कों पर खलीफा का नाम खुदवाया।
उसने अमीर खुसरो तथा अमीर हसन को राज्याश्रय दिया।
बलबन की मृत्यु के बाद कैखुसरो सुल्तान बना लेकिन दिल्ली के अमीरों ने उसे अपदस्थ कर बलबन के एक और पौत्र कैकुबाद को सुल्तान बना दिया।
कैकुबाद को पिता बुगरा खां के जीवित रहने पर ही सुल्तान बना दिया गया।
कैकुबाद ने जलालुद्दीन खिलजी को अपना सेनापति बनाया।
बाद में तुर्क सरदारों ने उसके पुत्र शम्सुद्दीन कैमुर्स को सुल्तान घोषित किया।
जलालुद्दीन खिलजी ने कैमुर्स की हत्या कर खिलजी राजवंश की स्थापना की।
जलालुद्दीन-खिलजी (1290-1296) :
जलालुद्दीन खिलजी ने किलोखरी को अपनी राजधानी बनाया।
गैर - तुर्की मलिकों ने खिलजी विद्रोह का स्वागत किया।
खिलजी ने तुर्कों को उच्च पदों से वंचित नहीं किया बल्कि उसका एकाधिकार समाप्त कर दिया।
वह दिल्ली सल्तनत का प्रथम सुल्तान था जिसने अपने विचारों को स्पष्ट रूप से रखा कि राज्य का आधार प्रजा का समर्थन होना चाहिए चूंकि भारत की अधिकांश जनता हिन्दू थी, अतः सही अर्थों में यहाँ कोई राज्य इस्लामी राज्य नहीं हो सकता था।
उसके शासनकाल में 1292 में मंगोल आक्रमणकारी अब्दुल्ला ने पंजाब पर आक्रमण किया।
देवगिरि के सफल अभियान के बाद जब अलाउद्दीन वापस आ रहा था तो सुल्तान स्वयं उससे मिलने कड़ा गया जहां अलाउद्दीन खिलजी ने अपने चाचा से गले मिलते समय हत्या कर दी।
अलाउद्दीन-खिलजी (1296-1316) :
अलाउद्दीन खिलजी पहले कड़ा का गर्वनर था।
बचपन में वही अली गुरशस्प नाम से प्रसिद्ध था।
उसके राज्यारोहण के साथ सल्तनत के साम्राज्यवादी युग का आरम्भ हुआ।
उसका राज्याभिषेक बलबन के लाल महल में हुआ था।
उसने सिकन्दरसानी की उपाधि धारण की।
उसके शासनकाल में अनेक मंगोल आक्रमण हुए।
उसने 1298 में गुजरात के रायकर्ण, 1300-1301 में रणथम्भौर के हम्मीरदेव, 1303 में चित्तौड़ के रतनसिंह, 1305 में मालवा के महलक देव तथा सिवाना के शीलतदेव एवं 1311 में जालौर के कान्हड़देव पर आक्रमण किया।
अलाउद्दीन की समकालीन दक्षिण की महत्वपूर्ण शक्तियां थीं-देवगिरि के यादव, तेलंगाना के होयसल, वारंगल के काकतीय तथा मदुरा के पांड्य राजवंश।
अलाउद्दीन प्रथम मुस्लिम शासक था जिसने दक्षिणी राज्यों पर आक्रमण किया।
उसने देवगिरि पर आक्रमण कर रामचन्द्र को पराजित किया तथा उसे 'राय रायान' की उपाधि प्रदान की। इसके अलावा नवसारी का किला भी रामचन्द्र को मिला।
1310 में उसने वारंगल के काकतीय शासक प्रताप रुद्रदेव को पराजित किया। यहीं से विश्वप्रसिद्ध 'कोहिनूर' हीरा प्राप्त हुआ।
1310-11 में होयसल राज्य के शासक वीर बल्लाल-III पर आक्रमण किया गया।
1311-12 में माबर (मदुरा) के पांड्य राज्य पर आक्रमण कर विशाल धन को प्राप्त किया गया।
अलाउद्दीन का अंतिम सैन्य अभियान दक्षिण भारत में देवगिरि के नये शासक शंकरदेव के विरुद्ध हुआ।
दक्षिणी राज्यों में आक्रमण का नेतृत्व मलिक कफूर द्वारा किया गया।
दक्षिणी राज्यों से धन वसूला गया न कि उसे सल्तनत में शामिल किया गया।
अलाउद्दील के प्रशासनिक सुधार :
उसने धर्म को राजनीति से अलग किया।
दीवान - ए - रियासत विभाग की स्थापना अलाउद्दीन खिलजी ने ही की थी जो आर्थिक मामलों से सम्बन्धित था।
सैन्य व्यवस्था में भष्टाचार को समाप्त करने के लिए उसने दाग तथा चेहरा प्रथा की शुरुआत की।
स्थायी सेना रखने वाला वह सल्तनत का प्रथम सुल्तान था।
उसने सेना की सीधी भर्ती एवं नकद वेतन देने की प्रथा को आरम्भ किया।
'बाजार नियंत्रण प्रणाली' अलाउद्दीन खिलजी की प्रमुख आर्थिक देन है।
सैनिकों को एक निश्चित वेतन पर जीवित रखने के उद्देश्य से अलाउद्दीन खिलजी ने सभी वस्तुओं के मूल्य निश्चित कर दिये।
वह प्रथम सुल्तान था जिसने भूमि की वास्तविक आय पर राजस्व निश्चित किया। भूमि पर उपज का 50% भूमिकर या खिराज के रूप में लेने की घोषणा की गयी।
आवास कर (घरी), चराईकर नामक कर भी लगाये गये।
उसने अमीर खुसरो तथा हसन को प्रश्रय दिया।
1316 ई. में उसकी मृत्यु हो गयी।
मुबारक खिलजी (1316-1320) :
उसने 'खिलाफत' के प्रति अपनी भक्ति नकारते हुए स्वयं को इस्लाम का सर्वोच्च प्रधान, स्वर्ग तथा पृथ्वी के अधिपति का खलीफा घोषित किया।
गयासुद्दीन तुगलक (1320-1325) :
गाजी मलिक ने सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक शाह की उपाधि धारण कर सल्तनत के तीसरे राजवंश की स्थापना की।
उसने भू-मापीकरण के अलाउद्दीन खिलजी की प्रथा को बंद करवा दिया।
वह प्रथम शासक था जिसने सिंचाई के लिए नहरों के निर्माण की योजना बनाई।
लगान की दर घटाकर उसने उपज का 1/11वां हिस्सा तय कर दिया।
उसने तुगलकाबाद के नगर-दुर्ग का निर्माण करवाया तथा सल्तनत काल के स्थापत्य का एक नवीन जीवन तैयार किया।
उसके शासनकाल में शहजादे जौना खां के नेतृत्व में वारंगल के काकतीय तथा मदुरा के पाण्ड्य साम्राज्य को विजित करके दिल्ली सल्तनत में शामिल कर लिया गया।
1325 में जब सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक बंगाल के सैनिक अभियान से लौट रहा था तब शहजादे जौना खां ने सुल्तान का स्वागत करने के लिए दिल्ली के पास अफगानपुर गांव में लकड़ी का एक मंडप तैयार किया। इसी मंडप के अचानक गिर जाने से सुल्तान की मृत्यु हो गयी।
मुहम्मद बिन तुगलक (1325-1351) :
मुहम्मद बिन तुगलक अन्तर्विरोधों का विस्मयकारी मिश्रण, रक्तपिपासु या परोपकारी या पागल भी कहा गया है। निजामुद्दीन औलिया ने गयासुद्दीन तुगलक के बारे में कहा था कि ’दिल्ली अभी बहुत दूर है।‘
गयासुद्दीन तुगलक की मृत्यु के बाद उसका पुत्र जौना खां मुहम्मद बिन तुगलक के नाम से सत्ता पर आसीन हुआ।
उसके बारे में बरनी के ’तारीख - ए - फिरोजशाही’ तथा इब्नबतूता के ’रेहला‘ से जानकारी मिलती है।
अफ्रीकी यात्री इब्न बतूता को सुल्तान ने दिल्ली का काजी नियुक्त किया तथा 1342 में वह सुल्तान के राजदूत की हैसियत से चीन गया था।
मुहम्मद बिन तुगलक अपनी पांच योजनाओं के लिए प्रसिद्ध है।
सुल्तान का सबसे विवादास्पद निर्णय राजधानी परिवर्तन का था जिसके तहत राजधानी को दिल्ली से देवगिरि (दौलताबाद) स्थानान्तरित कर दिया गया।
सुल्तान की दूसरी परियोजना थी प्रतीक मुद्रा का प्रचलन।
सुल्तान की तीसरी परियोजना भी खुरासान अभियान।
कराचिल अभियान के तहत सुल्तान ने खुसरो मलिक के नेतृत्व में एक विशाल सेना कुमायूं-गढ़वाल क्षेत्र में स्थित कराजिल को जीतने के लिए सेना भेजी गयी।
अंतिम परियोजना के तहत सुल्तान ने 'दोआब क्षेत्र' में कर वृद्धि कर दी। दुर्भाग्यवश इसी समय अकाल पड़ गया तथा अधिकारियों द्वारा जबरन वसूली के कारण उस क्षेत्र में विद्रोह हो गया तथा परियोजना असफल रही।
कृषि में विस्तार तथा विकास के लिए 'दीवान-ए-अमीर-ए कोही' नामक विभाग की स्थापना की गयी।
मुहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल में ही दक्षिण में 1336 में हरिहर तथा बुक्का नाम के दो भाइयों ने स्वतंत्र विजयनगर राज्य की स्थापना की।
सल्तनतकालीन पुस्तकें
फिरोजशाह तुगलक राजपूत मां (रणमल की पुत्री बीबी नैला का पुत्र था) का पुत्र था।
उसने ब्राह्मणों पर भी जजिया कर लगा दिया।
सिंचाई पर भी 'हब-ए-शर्ब' नामक सिंचाई कर लगाया गया।
उसने उत्तम कोटि की फसलों का प्रचलन किया तथा फलों के 1200 बाग लगाये गये।
सेना को नकद वेतन के बदले भू-राजस्व वाले गांव दिये जाते थे।
1361 में नगरकोट पर आक्रमण कर वहां के शासक को पराजित किया तथा ज्वालामुखी मंदिर को तोड़ा।
निर्धनों की सहायता के लिए उसने 'दीवान-ए-खैरात' विभाग की स्थापना की।
फिरोजाबाद, जौनपुर, हिसार, फतेहाबाद आदि नगरों की स्थापना भी उसी के शासनकाल में हुई।
उसके शासनकाल में ही मेरठ एवं टोपरा में स्थित अशोक स्तम्भों को दिल्ली लाकर स्थापित किया गया।
दासों के संरक्षण हेतु 'दीवान-ए-बंदगान' नामक एक अलग विभाग की स्थापना की गयी।
उसने जियाउद्दीन बरनी तथा शम्स - ए - सिराज अफीफ को संरक्षण दिया।
फिरोजशाह का अंतिम सैनिक अभियान 1365-67 में थट्टा में हुआ जो सफल नहीं रहा।
सल्तनत के पतन तथा विघटन की जो प्रक्रिया मुहम्मद बिन तुगलक के शासन के अंतिम दिनों में प्रारम्भ हुई थी, वह फिरोजशाह के शासनकाल में और तीव्र हो गयी।
परवर्ती तुगलक सुल्तान :
फिरोजशाह तुगलक के उपरान्त उसका एक पौत्र शाह गयासुद्दीन तुगलक II के नाम से गद्दी पर बैठा। अगले 5 वर्षों के दौरान तीन सुल्तान अबूबक्र, मुहम्मद शाह तथा अलाउद्दीन सिकन्दरशाह गद्दी पर बैठे।
नासिरुद्दीन महमूद (1394-1412) तुगलक वंश का अंतिम शासक था।
नासिरुद्दीन महमूद के शासनकाल में मंगोल सेनानायक तैमूर का दिसम्बर 1398 में आक्रमण हुआ।
महमूद के साम्राज्य के बारे में कहा जाता था कि शहंशाह की सल्तनत दिल्ली से पालम तक फैली हुई है।
सैय्यद वंश (1414-1451) :
खिज्र खां सैयद वंश का संस्थापक था।
तत्पश्चात् मुबारकशाह (1421-1434) उसका उत्तराधिकारी बना।
अंतिम सैय्यद शासक शाह आलम को गद्दी से उतारकर वजीर बहलोल लोदी ने नये राजवंश की नींव रखी।
मुबारकशाह के शासनकाल में याहिया बिन सरहिन्दी ने तारीख-ए-मुबारकशाही नामक ग्रंथ की रचना की।
बहलोल लोदी (1451-1489) :
बहलोल लोदी अफगानिस्तान के गिलजाई कबीले की शाखा शाहूखेल में पैदा हुआ था।
उसने जौनपुर के शर्की शासक को पराजित कर जौनपुर को पुनः सल्तनत में शामिल किया।
ग्वालियर अभियान उसका अंतिम सैनिक अभियान था।
उसने बहलोली सिक्के चलाये।
सिकन्दर लोदी (1489-1517) :
उसने 1504 में आगरा नगर का निर्माण करवाया तथा उसके बाद अपनी राजधानी को आगरा स्थानान्तरित कर दिया।
भूमि माप के लिए उसने 'सिकन्दरी गज' का प्रयोग किया।
वह 'गुलरुखी' नाम से कविताएं लिखता था।
इब्राहिम लोदी (1517-1526) :
उसने ग्वालियर के शासक विक्रमजीत सिंह को अपने अधीन किया लेकिन मेवाड़ शासक राणा सांगा के विरुद्ध उसका अभियान असफल रहा।
पानीपत के प्रथम युद्ध में तैमूरवंशी शासक बाबर के साथ हुए युद्ध में 21 अप्रैल, 1526 को इब्राहिम लोदी पराजित हुआ।
दिल्ली सल्तनत का प्रशासन
तुर्क सुल्तानों ने स्वयं को बगदाद के अब्बासी खलीफा का स्वामिभक्त उत्तराधिकारी घोषित किया तथा खुतबे पर भी उसके नाम को शामिल किया।
सुल्तान न्यायपालिका, कार्यपालिका का प्रधान होता था।
उत्तराधिकार का कोई स्वीकृत नियम नहीं था।
वजीर राज्य का सर्वोच्च मंत्री होता था।
भारतीय वजारत का स्वर्णकाल 'तुगलक काल' को कहा जाता है।
प्रान्तीय शासन के प्रधान को वली या मुक्ति कहा जाता था।
प्रान्तों को 'इक्ता' भी कहा जाता था।
इक्ताओं का विभाजन शिकों या जिलों में हुआ था। यहाँ का शासन आमिल या नाजिम करता था।
दीवान-ए-अर्ज सैनिक विभाग को कहा जाता था। इसका प्रधान आरिज-ए-मुमालिक होता था।
मंगोल सेना की वर्गीकरण पद्धति 'दशमलव प्रणाली' को ही सल्तनकाल में अपनाया गया।
इल्तुतमिश ने सैनिकों को इक्ता बांटने की परम्परा आरम्भ की जिसे अलाउद्दीन खिलजी के शासनकाल में समाप्त कर दिया गया।
स्थानीय प्रशासन में खूत, मुकद्दम तथा चौधरी राजस्व वसूल कर शाही राजकोष में जमा करते थे।
सल्तनतकालीन आर्थिक व्यवस्था
स्वतंत्र प्रान्तीय राज्य
दिल्ली सल्तनत को चुनौती
बंगाल :
गयासुद्दीन तुगलक ने बंगाल को तीन प्रशासकीय विभागों में बांट दिया-लखनौती (उत्तरी बंगाल), सोनारगांव (पूर्वी बंगाल), सतगांव (दक्षिणी बंगाल)।
हाजी इलियास ने 1345 ई. में बंगाल विभाजन को समाप्त कर दिया तथा शम्सुद्दीन इलियास शाह की उपाधा धारण की।
सिकन्दरशाह (1358-1390) के शासनकाल में पांडुआ में अदीना मस्जिद का निर्माण किया गया।
गयासुद्दीन आजमशाह (1390-1410) के शासनकाल में चीन से राजनीतिक तथा सांस्कृतिक संबंध कायम किये गये।
सुल्तान आजमशाह अपनी न्यायप्रियता के लिए प्रसिद्ध थे। साथ ही फारसी के प्रसिद्ध कवि हाशिमी शीराजी से इसके संबंध थे।
चटगांव बन्दरगाह का विकास भी अजामशाह के शासनकाल में हुआ।
1493 में अलाउद्दीन हुसैनशाह बंगाल का स्वतंत्र शासक बना।
हुसैनशाह के शासनकाल में पांडुआ के स्थान पर गौड़ बंगाल की राजधानी बनी।
इसके शासनकाल में हिन्दुओं को ऊँचे पदों पर नियुक्त किया गया।
चैतन्य महाप्रभु हुसैनशाह का समकालीन था।
मालधार वसु ने अलाउद्दीन के समय में श्रीकृष्ण विजय की रचना कर गुणराज खान की उपाधि ग्रहण की।
अलाउद्दीन करुण का अवतार माना जाता था।
नासिरुद्दीन नुसरत शाह अलाउद्दीन हुसैन शाह का उत्तराधिकारी बना।
नुसरत शाह के शासनकाल में हुमायूं तथा शेरशाह ने बंगाल पर आक्रमण किया।
नुसरत शाह के शासनकाल में ही महाभारत का बंगला अनुवाद तथा बड़ा सोना व कदम रसूल मस्जिद का निर्माण हुआ।
गयासुद्दीन महमूद शाह हुसैनशाही राजवंश का अंतिम शासक था।
कश्मीर :
1320 में तिब्बती सरदार रिंचान ने हिन्दू शासक सूहादेव से सत्ता छीन ली।
तत्पश्चात् उदयनदेव शासक बना तथा उसकी मृत्यु के बाद उसकी विधवा पत्नी 'कोटा' ने सत्ता को अपनी अधीन किया।
बाद में शाहमीर ने कोटा को कैद कर शम्सुद्दीन शाह की उपाधि धारण की।
शम्सुद्दीन शाह कश्मीर का प्रथम मुस्लिम शासक था।
सुल्तान शहाबुद्दीन शाहमीर वंश का वास्तविक संस्थापक माना जाता है।
सिकन्दर शाहमीर के शासनकाल में कश्मीर में तैमूर आक्रमण हुआ।
सिकन्दर ने कश्मीर में जजिया लगा दिया तथा ब्राह्मणों को उच्च पदों से बर्खास्त कर दिया।
मार्तंड सूर्य मंदिर को सिकन्दर ने ही तोड़वा दिया था।
सुल्तान जैन-उल-आबिदीन (1420-1470) सिकन्दर का उत्तराधिकारी बना। उसके सिकन्दर की सभी नीतियों को उलट दिया।
धार्मिक सहिष्णुता के कारण आबिदीन को 'कश्मीर का अकबर' तथा 'वुड़शाह' (महान सुल्तान) कहा जाता है।
उसके शासनकाल में गायों की सुरक्षा, सती प्रथा पर से प्रतिबंध को समाप्त करने, शवदाह कर, जजिया कर आदि न वसूल करने का आदेश दिया गया।
इसी समय बूलर झील में जैनलंका नामक द्वीप का निर्माण किया गया।
वह फारसी में कुतुब नाम से कविताएं लिखता था।
जैन प्रकाश जैन-उल-आबिदीन का जीवन चरित्र है।
हाजी खां हैदरशाह इस वंश का अंतिम शासक था।
1588 में कश्मीर को मुगल साम्राज्य में शामिल कर लिया गया।
मालवा :
मध्य भारत में मालवा की स्वतंत्र सल्तनत की स्थापना 1401 में हुसैन खां गोरी ने की थी, जिसे फिरोज तुगलक ने अमीर के रूप में दिलावर खां की उपाधि दी थी। 1436 में महमूद खिलजी प्रथम ने खिलजी वंश की स्थापना की।
महमूद खिलजी ने गुजरात के अहमशाह-I एवं मेवाड़ के राणा कुम्भा के विरूद्ध युद्ध किया।
मेवाड़ युद्ध में दोनों पक्षों ने विजय का दावा किया।
महमूद खिलजी ने मांडू में एक सात मंजिला महल का निर्माण कराया।
जबकि राणा कुम्भा ने चित्तौड़ में एक विजय स्तम्भ बनाया।
गुजरात के शासक बहादुरशाह ने 1531 में मालवा को गुजरात में मिला लिया।
गुजरात :
1401 में जफर खां ने अपने को गुजरात का स्वतंत्र शासक घोषित कर दिया।
अहमदशाह (1411-1441) को गुजरात राज्य की स्वतंत्रता का वास्तविक संस्थापक माना जाता है।
अहमदाबाद के स्थान पर पहले असावल नामक कस्बा था।
1458 में अबुल फतह खां अर्थात् 'महमूद बेगड़ा' गुजरात का शासक बना।
बेगड़ा ने दीव में पुर्तगालियों को कारखाना खोलने के उद्देश्य से भूमि दी।
बेगड़ा ने मुस्तफाबाद नामक शहर की स्थापना की जो उसकी राजधानी भी बनी।
बहादुरशाह के शासनकाल में 1531 में मालवा को गुजरात में शामिल कर लिया गया।
1534 में बहादुरशाह ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया।
1535 में गुजरात पर मुगल शासक हुमायूं का आक्रमण हुआ।
1572-73 में मुगल सम्राट अकबर द्वारा गुजरात मुगल साम्राज्य में शामिल कर लिया गया।
मेवाड़ :
गुहिलोत राजवंश के अंतर्गत मेवाड़ एक प्राचीन राज्य था जिसकी राजधानी नागदा थी।
अलाउद्दीन खिलजी के मेवाड़ आक्रमण के समय रतन सिंह का शासन था।
मुहम्मद बिन तुगलक के समय में सिसोदिया वंश के हम्मीरदेव ने मेवाड़ को पुनः स्वतंत्र करा दिया।
राणा कुम्भा के शासनकाल में चित्तौड़ में एक कीर्तिस्तम्भ का निर्माण हुआ।
कुम्भा ने जयदेव के गीतगोविन्द पर रसिकप्रिया नाम से तथा चंडीशतक पर टीका लिखी।
कुम्भा कुशल वीणावादक था तथा उसने संगीतराज, संगीत मीमांसा तथा संगीत रत्नाकर जैसे ग्रन्थों की रचना की थी।
कुम्भा ने अत्रि तथा महेश को संरक्षण दिया जिसने विजय स्तम्भ की रचना की थी।
1509 में राणा सांगा मेवाड़ की गद्दी पर बैठा।
सांगा ने इब्राहिम लोदी, महमूद खिलजी II तथा मुजफरशाह II को पराजित किया।
1527 के खानवा युद्ध में बाबर से राणा सांगा पराजित हुआ।
जहांगीर के शासनकाल में मेवाड़ मुगल साम्राज्य के अधीन हो गया।
मारवाड़ :
मारवाड़ के जोधा (1438-1489) ने जोधपुर नामक नगर की स्थापना की।
राठौड़ राज्य की राजधानी बीकानेर की स्थापना राव बीका ने की।
जौनपुर :
जौनपुर को ’भारत का सिराज‘ कहा जाता है।
जौनपुर की स्थापना फिरोजशाह तुगलक ने अपने चचेरे भाई जौन खां अर्थात् मुहम्मद बिन तुगलक की स्मृति में करवायी थी।
1394 में सुल्तान मुहम्मद तुगलक II ने अपने वजीर ख्वाजा जहां मलिक सरवर को 'मलिक-उस-शर्क' (पूर्व का स्वामी) की उपाधि प्रदान की।
1398 में तैमूर आक्रमण का लाभ उठाकर मलिक-उस-शर्क ने अपने को स्वतंत्र शासक घोषित कर दिया तथा शर्की वंश की नींव डाली।
इस वंश का शासक शम्सुद्दीन इब्राहिम शाह शर्की स्थापत्य के जौनपुर या शर्की शैली का जन्मदाता कहा जाता है।
हुसैनशाह शर्की अंतिम शर्की सुल्तान था।
सिकन्दर लोदी के समय में जौनपुर को पुनः दिल्ली सल्तनत के अधीन कर लिया गया।
सुल्तान इब्राहिम शाह के शासनकाल में साहित्य और स्थापत्य कला के क्षेत्र में हुए विकास के कारण जौनपुर को 'भारत का सीराज' कहा जाता है।
खानदेश :
मलिक राजा फारुखी ने स्वतंत्र खानदेश (नर्मदा व ताप्ती नदियों के बीच) की स्थापना की।
पूर्व में यह मुहम्मद बिन तुगलक के राज्य का हिस्सा था।
बुरहानपुर खानदेश की राजधानी थी।
असीरगढ़ फारुखी शासकों का सैनिक मुख्यालय था।
1589 में बुरहानपुर में जामा मस्जिद का निर्माण आदिलशाह फारुखी IV ने करवाया।
बहमनी :
स्वतंत्र बहमनी राज्य की स्थापना मुहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल में हुई।
विद्रोही अमीरों ने इस्माइल मुख को अपना सुल्तान चुना जिसने अलाउद्दीन हसन बहमन शाह की उपाधी धारण की तथा गुलबर्गा (कर्नाटक) को अपनी राजधानी बनाया।
मुहम्मदशाह I के शासनकाल में वारंगल तथा विजयनगर के शासकों के साथ युद्ध हुआ।
मुहम्मदशाह II शांतिप्रिय तथा विद्या प्रेमी शासक था। उसके शासनकाल में अनेक मस्जिदों, अनाथालयों, निःशुल्क पाठशालाओं का निर्माण करवाया गया।
ताजुद्दीन फिरोज एक पराक्रमी शासक था। उसने विजयनगर राज्य को दो बार पराजित किया लेकिन तीसरी बार पराजित हो गया।
शिहाबुद्दीन अहमद I (1422-1436) ने गुलबर्गा के स्थान पर बीदर को अपनी राजधानी बनाया।
बीदर का नया नाम मुस्तफाबाद रखा गया।
शिहाबुद्दीन अहमद I संत अहमद के नाम से भी जाना जाता है।
अलाउद्दीन अहमद II का गुजरात, खानदेश तथा विजयनगर के साथ संघर्ष हुआ।
अलाउद्दीन हुमायूं (1458-61) को उसकी निष्ठुरता के लिए 'जालिम' कहा जाता है।
निजामशाह के शासनकाल में राजमाता मखदूम जहां ने ख्वाजा जहां तथा ख्वाजा महमूद गावां के सहयोग से शासन का संचालन किया।
शम्सुद्दीन मुहम्मद III (1463-1482) के शासनकाल में महमूद गावां का प्रभावशाली रूप से उदय हुआ।
महमूद गावां को ख्वाजा जहां की उपाधि देकर राज्य का प्रधानमंत्री बनाया गया।
बहमनी राज्य का सर्वाधाक विस्तार महमूद गावां के समय में हुआ।
महमूद गावां के समय में ही गोवा पर बहमनी का अधाकार हुआ।
1482 में गावां के विरोधी सरदारों ने मुहम्मद III को उसके खिलाफ भड़काकर गावां की हत्या करवा दी।
महमूदशाह के समय में बहमनी राज्य का पतन हुआ।
कलीमुल्लाह बहमनी राज्य का अंतिम शासक था।
रूसी यात्री अल्थेनसियस निकितिन ने मुहम्मद III के शासनकाल में 1470-1474 के बीच बहमनी राज्य का भमण किया था।
बहमनी राज्य के पतन के बाद दक्कन में पांच स्वतंत्र राज्यों का उदय हुआ - बीदर, बरार, बीजापुर, अहमदनगर तथा गोलकुंडा।
बीदर :
बीदर को दक्षिण की लोमड़ी कहा जाता है। बीदर के बरीदशाही वंश का संस्थापक कासिम बरीद था।
अली बरीदशाह ने विजयनगर के विरूद्ध युद्ध में मित्र राज्यों की सेना को मदद दी।
बीजापुर के आदिलशाही सुल्तान ने इब्राहिम बरीदशाह के शासनकाल में बीदर को अपने राज्य में मिला लिया।
बरार :
बरार के इमादशाही वंश का संस्थापक फतेह उल्लाह इमादशाह ने की थी।
बरार बहमनी राज्य से स्वतंत्र होने वाला प्रथम राज्य था।
इसकी दो राजधानियां थी-एलिचपुर और गाविलगढ़।
1574 में अहमदनगर ने बरार को अपने राज्य में मिला लिया।
अहमदनगर :
अहमदनगर के निजामशाही राजवंश का संस्थापक अहमदशाह निजाम-उल-मुल्क था।
उसने अहमदनगर की स्थापना की तथा राजधानी जुन्नैर से वहां स्थानान्तरित की।
बुरहान निजाम शाह ने बीजापुर, बीदर, बरार तथा विजयनगर के साथ आरम्भ में मित्रता की तथा बाद में शत्रुता।
हुसैन निजामशाह के शासनकाल में बीजापुर के अली आदिलशाह, गोलकुंडा के इब्राहीम कुतुबुशाह और विजयनगर के राम राय की संयुक्त सेनाओं ने 1562 में अहमदनगर पर आक्रमण कर दिया।
शाहजहां के शासनकाल में 1633 में अहमदनगर को मुगल साम्राज्य में शामिल कर लिया गया साथ ही मुर्तजा निजाम शाह को बंदी बना लिया। कुछ प्रदेश बीजापुर को भी दे दिया गया।
बीजापुर :
बीजापुर के आदिलशाही राजवंश का संस्थापक यूसुफ आदिल खां था।
इस्माइल के शासनकाल में गोआ पर पुर्तगालियों ने अधिकार कर लिया।
इब्राहिम के शासनकाल में फारसी के स्थान पर हिन्दवी को राजकाज की भाषा बनाया गया और हिन्दुओं के अनेक पदों पर नियुक्त किया गया।
अली आदिल शाह (1558-1580) के शासनकाल में शोलापुर पर अधिकार को लेकर अहमदनगर और बीजापुर के मध्य संघर्ष हुआ।
अली आदिल शाह ने हुसैन निजामशाह की पुत्री चांद बीबी के साथ विवाह करके अहमदनगर के साथ समझौता कर लिया।
इस समझौते के परिणामस्वरूप दक्कनी मुस्लिम राज्यों ने विजयनगर के विरूद्ध एक संयुक्त सैनिक मोर्चे का गठन किया, जिसने 1565 में विजयनगर को बुरी तरह पराजित किया।
इब्राहिम II विद्या का संरक्षक था। इब्राहिम को ’अबला बाबा’ व जगतगुरु की उपाधी दी गई।
इस काल में सुल्तान की चाची चांद बीबी बीजापुर की वास्तविक शासिका रही।
मुहम्मद आदिल शाह गोल गुम्बद के नाम से विश्व प्रसिद्ध मकबरे में दफन है।
अली आदिल शाह II (1627-1672) के शासनकाल में शाहजहां ने औरंगजेब को सैनिक कार्यवाही करने का आदेश दिया।
आदिलशाही वंश का अंतिम सुल्तान सिकन्दर आदिल शाह था।
सिकन्दर आदिल शाह के शासनकाल में 1674 में शिवाजी ने रायगढ़ में छत्रपति के रूप में अपना राज्याभिषेक किया।
1686 ई. में औरंगजेब ने बीजापुर को मुगल साम्राज्य में मिला लिया।
गोलकुंडा :
स्वतंत्र गोलकुंडा राज्य का संस्थापक कुली कुतुबशाह था।
इब्राहिम कुतुबशाह महान कूटनीतिज्ञ था।
मुहम्मद कुलीशाह हैदराबाद नगर का संस्थापक तथा दक्कनी उर्दू में लिखित प्रथम काव्यसंग्रह या दीवान का लेखक था।
मुहम्मद कुलीशाह ने उर्दू तथा तेलुगू को संरक्षण दिया।
अब्दुल्ला के शासनकाल में गोलकुंडा का प्रसिद्ध अमीर मीर जुमला द्वारा मुगलों के साथ मिल जाने के कारण मुगलों ने हैदराबाद पर 1656 में अधिकार कर लिया।
अंतिम कुतुबशाही सुल्तान अबुल हसन कुतुबशाह था।
1687 में मुगलों ने गोलकुंडा को अपने साम्राज्य में मिला लिया।
गोलकुंडा हीरों का विश्व प्रसिद्ध बाजार था।
मसूलीपट्टनम कुतुबुशाही साम्राज्य का विश्व प्रसिद्ध बंदरगाह था।
डच तथा अंग्रेज दोनों व्यापार के लिए पहली बार यहीं आये।
यहाँ उत्पादित वस्त्रों का विश्व में निर्यात होता था।
मुहम्मद कुली द्वारा हैदराबाद में निर्मित चारमीनार विश्व प्रसिद्ध है।
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