भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
1876 में स्थापित इण्डियन एशोसियेशन (सुरेन्द्र नाथ बनर्जी द्वारा) को भारत का कांग्रेस से पूर्व प्रथम महत्वपूर्ण राजनीतिक संगठन माना जाता है।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना का श्रेय एक सेवानिवृत्त अंग्रेज प्रशासक ए.ओ.ह्यूम को दिया जाता है। इनकी तथा तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड डफरिन के सहयोग से दिसम्बर 1885 में बम्बई के सर गोकुल दास तेजपाल भवन में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का आयोजन किया गया। इसकी अध्यक्षता डब्ल्यू.सी. बनर्जी ने की तथा इसमें 72 प्रतिनिधि शासन थे। सचिव ए.ओ. ह्यूम थे।
उदारवादी चरण 1885-1905 ई.
इस चरण में कांग्रेस की मुख्य भूमिका भारतीय राजनीतिज्ञों को एकता व प्रशिक्षण के लिए एक मंच प्रदान करने के रूप में थी।
इस युग में कांग्रेस पर दादाभाई नौरोजी, फिरोज शाह मेहता, दिनशा वाचा, व्योमेश चन्द्र बनर्जी, गोपाल कृष्ण गोखले आदि लोगों का वर्चस्व था।
प्रमुख उपलब्धियां : जनता में राष्ट्रीयता की भावना जगायी, लोकतंत्र एवं राष्ट्रवाद की भावना को लोकप्रियता, ब्रिटिश साम्राज्यवाद शोषक चरित्र का खुलासा, राष्ट्रीय स्तर पर समान राजनीतिक आर्थिक कार्यक्रम, इंडियन कौंसिल एक्ट 1892 पारित आदि।
अनुदारवादी चरण 1905-1919
इस चरण के मध्य कांगेस में नये लोगों का प्रवेश हुआ, जिसमें लोकमान्य तिलक, विपिन चन्द्रपाल, अरविंद घोष तथा लाला लाजपत राय आदि प्रमुख थे। इन्होंने सरकार के समक्ष स्वराज्य की मांग रखी।
उनका मत था कि भारतीयों को मुक्ति स्वयं अपने प्रयासों से प्राप्त करनी होगी। नरमपंथियों की इस मान्यता को भारत अंग्रेजों के कृपापूर्ण मार्गदर्शन और नियंत्रण में ही प्रगति कर सकता है मानने से इंकार कर दिया।
सूरत अधिवेशन (1907 ई.) : 1907 ई. में कांग्रेस के सूरत अधिवेशन में कांग्रेस नरमपंथी और गरमपंथी दो अलग-अलग गुटों में विभक्त हो गया।
बंगाल विभाजन 1905 : वायसराय लार्ड कर्जन ने देशभक्ति के उफनते सैलाब को रोकने के लिए राष्ट्रीय गतिविधियों के केन्द्र बंगाल को 20 जुलाई, 1905 ई. को दो प्रान्तों पश्चिम बंगाल (बिहार, उड़ीसा) व पूर्वी बंगाल में विभाजन का निर्णय लिया।
स्वदेशी तथा बहिष्कार आन्दोलन (1905 ई.) : इस आन्दोलन के दौरान लोगों ने सामूहिक रूप से विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करना प्रारम्भ कर दिया। विदेशी कपड़ों की होली जलायी गयी। लोगों ने विदेशी पदवियों आदि का त्याग कर दिया।
कड़े विरोध के कारण 1911 ई. में सरकार को बग-भंग का आदेश वापस लेना पड़ा। यह निर्णय जार्ज पंचम के दिल्ली दरबार (1911 ई.) में लिया गया, जो 1912 ई. में लागू हो गया।
मुस्लिम लीग (1906 ई.) :
30 दिसम्बर, 1906 को ढ़ाका में भारतीय मुसलमानों में अंग्रेजी सरकार के प्रति वफादारी लाने के उद्देश्य से ब्रिटिश समर्थक मुसलमानों ने नवाब की अध्यक्षता में मुस्लिम लीग की स्थापना की।
1908 में आगा खां को मुस्लिम लीग का स्थायी अध्यक्ष बनाया गया।
1916 ई. में लखनऊ समझौते के पश्चात् कांग्रेस व मुस्लिम लीग ने एक ही मंच पर कार्य करने का निर्णय किया।
दिल्ली दरबार (1911 ई.) :
तत्कालीन वायसराय लॉर्ड हार्डिंग ने 1911 ई. में सम्राट जार्ज पंचम तथा महारानी मेरी को भारत बुलाया और दिल्ली में भव्य दरबार का आयोजन करवाया। इसी दरबार में बंगाल विभाजन को रद्द करने तथा राजधानी कलकत्ता से दिल्ली स्थानान्तरित करने (1912 ई.) की घोषणा की गई।
पश्चिमी तथा पूर्वी बंगाल को फिर से एक करने का बिहार और उड़ीसा नाम के एक प्रान्त के निर्माण की घोषणा भी हुई।
लखनऊ समझौता (1916 ई.) :
कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन में महात्मा गांधी, सरोजिनी नायडू, अबुल कलाम आजाद आदि नेताओं के प्रयासों से कांग्रेस और मुस्लिम लीग में समझौता हो गया।
होमरूल आन्दोलन (1916 ई.) :
एनी बेसेंट द्वारा आयरिश होमरूल लीग के आधार पर भारत में होमरूल आन्दोलन आरम्भ किया गया।
अप्रैल 1916 में तिलक ने बेलगांव (महाराष्ट्र) में होमरूल लीग का गठन किया। इसकी गतिविधियां मध्य प्रान्त, महाराष्ट्र (बम्बई को छोड़कर), कर्नाटक एवं बरार तक सीमित थी।
सितम्बर, 1916 में एनीबेसेंट ने मद्रास में अपना होमरूल लीग आरम्भ किया।
होमरूल आन्दोलन का उद्देश्य था कि जनता को शिक्षित किया जाए और कांग्रेस को अपने आन्दोलन तथा एकमात्र उद्देश्य के लिए आधार बनाने में सहायता दी जाए। इनका उद्देश्य सरकार पर दबाव डालकर भारत को स्वशासन दिलाना था।
रॉलेक्ट एक्ट एवं जालियावाला बाग हत्याकांड :
1919 में देश में फैल रही राष्ट्रीयता की भावना एवं क्रांतिकारी गतिविधियां को कुचलने के लिए ब्रिटेन को पुनः शक्ति की आवश्यकता थी। इस संदर्भ में सर सिडनी रॉलेट को नियुक्त किया गया।
क्रांतिकारियों पर हुए मुकदमे
इस रॉलेट बिल को जनता ने काला कानून नाम दिया था।
इसके विरोध में गांधीजी ने 30 मार्च और 6 अप्रैल, 1919 को देशव्यापी हड़ताल का आह्वान किया। बम्बई में सत्याग्रह सभा का गठन किया गया और सत्याग्रह नामक गैरकानूनी पत्र का प्रकाशन आरम्भ हो गया।
रॉलेट एक्ट विरोधी जनसभाओं में पंजाब के जनप्रिय नेताओं सत्यपाल एवं सैफुद्दीन किचलू को भाषण देने की मनाही सरकार ने कर दी और 10 अप्रैल, 1919 को इन्हें गिरफ्तार भी कर लिया गया।
भारतीय नेताओं की गिरफ्तारी के विरूद्ध 13 अप्रैल, 1919 की दोपहर को जलियावाला बाग में एक सभा का आयोजन किया गया।
जनरल डायर 150 सशत्र सैनिकों समेत वहां पहुंचा। डायर ने सैनिकों को वहां एकत्र भीड़ पर गोली चलाने का आदेश दिया। गोलियों की वर्षा तब तक होती रही, जब तक कि वे समाप्त नहीं हो गयीं।
इस गोलीकांड में हजारों लोग मारे गये। इस हत्याकांड के विरोध में रवीन्द्रनाथ टैगोर ने ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रदान की गयी नाइटहुड की उपाधि लौटा दी।
कांग्रेस के बार-बार आग्रह और सर्वव्यापी असंतोष को देखे हुए इस हत्याकांड की जांच के लिए अक्टूबर 1919 में सरकार ने हंटर कमेटी के गठन की घोषणा की। इस कमेटी के अनार इस कांड में सरकार का कोई दोष नहीं था।
क्रांतिकारी आन्दोलन
यूरोपियों की प्रथम राजनैतिक हत्या 22 जून, 1897 को पूना में हुई इसमें प्लेग समिति के प्रधान श्री रैंड तथा लेफ्टिनेंट एयर्स्ट की हत्या चापेकर बंधुओं (दामोदर और बालकृष्ण) ने कर दी। इन दोनाें को सरकार ने फांसी की सजा दी।
इसी कांड के पक्ष में लेख लिखने के कारण तिलक को 18 माह के कारावास की सजा भी दी गयी थी। जून, 1908 में पुनः राजद्रोह के आरोप में तिलक को छः वर्ष की सजा दी गयी।
1908 ई. मुजफ्फपुर के एक जज पर प्रफुल्ल चाकी और खुदीराम बोस ने बम से हमला किया। प्रफुल्ल चाकी ने आत्महत्या कर ली तथा खुदीराम बोस को फांसी दे दी गयी।
1912 में वायसराय लार्ड हार्डिंग पर बम फेंका गया। इस कांड के पीछे रास बिहारी बोस की योजना थी। इस कांड में अमीरचंद, अवध बिहारी तथा बसंत कुमार विश्वास को फांसी दी गयी।
1924 में समस्त क्रांतिकारी दलों का कानपुर में एक सम्मेलन बुलाया गया। चन्द्रशेखर आजाद की अध्यक्षता में हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन की स्थापना हुई।
अगस्त, 1925 में क्रांतिकारियों ने सहारनपुर-लखनऊ लाइन पर काकोरी जाने वाली ट्रेन को लूट ली, काकोरी कांड में रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्ला खां, राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी और रोशन सिंह को फांसी की सजा दी गयी।
भगत सिंह के नेतृत्व में साइमन आयोग के विरूद्ध प्रदर्शन करते हुए लाला लाजपत राय पर किये गये लाठीचार्ज के फलस्वरूप हुई उनकी मृत्यु का बदला लेने के लिए लाहौर के सहायक पुलिस कप्तान सांडर्स की नवम्बर 1928 में हत्या कर दी गयी।
8 अप्रैल, 1929 को सरदार भगत सिंह तथा बटुकेश्वर दत्त ने सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेम्बली में बहरी ब्रिटिश सरकार को जन आकांक्षाओं से परिचित कराने के लिए बम फेंका। सांडर्स हत्याकांड तथा लाहौर षड्यंत्र के तहत 23 मार्च, 1931 को भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरू को फांसी दे दी गयी।
बंगाल में अप्रैल 1930 में मास्टर सूर्यसेन ने चटगांव शात्रागार पर धावा बोला तथा अपने को प्रान्तीय स्वतंत्र भारत सरकार का प्रधान घोषित कर दिया। 1933 में उन्हें भी फांसी पर लटका दिया गया।
विदेशों में क्रांतिकारी गतिविधियां : 1905 ई. में लंदन में श्यामजी कृष्णवर्मा ने इंडियन होमरूल सोसायटी की स्थापना की। सावरकर, सरदार सिंह राणा तथा मदनलाल ढींगरा जैसे क्रांतिकारी इस संगठन से सम्बद्ध थे।
सर विलियम कर्जन वायली को जून, 1909 में की गयी हत्या के आरोप में मदनलाल ढींगरा को फांसी दे दी गयी।
सन् 1913 में लाला हरदयाल ने सैन फ्रांसिस्को (अमेरिका) में गदर पार्टी की स्थापना की।
गुरूदीप सिंह द्वारा 376 यात्रियों को जलमार्ग द्वारा बैकूबर ले जाने पर कामागाटामारू घटना हुई (1914)। कामाकाटामारू जहाज का नाम था जिसे कनाडा में रुकने नहीं दिया गया।
गांधी युग
गांधीजी का राष्ट्रीय आन्दोलन में प्रवेश : महात्मा गांधी 1894-1914 तक दक्षिण-अफ्रीका में रहने के बाद 1915 में भारत आये।
अहमदाबाद में साबरमती आश्रम की स्थापना की। 1917 ई. में चम्पारन (बिहार) में नील की खेती करने वाले किसानों के प्रति यूरोपियन अधिकारियों के अत्याचारों के विरोध में प्रथम सत्याग्रह किया।
1920 में गांधीजी की सलाह पर असहयोग आन्दोलन आरम्भ हुआ। इसके बाद से स्वतंत्रता प्राप्ति तक गांधीजी राजनीतिक जीवन में बहुत सक्रिय रहे।
खिलाफत आन्दोलन मुसलमानों की निष्ठा खलीफा के राज्य तुर्की के प्रति थी। 1914 में रूस इंग्लैंड और फ्रांस ने तुर्की के विरूद्ध युद्ध की घोषणा कर दी, जिसमें तुर्की की हार हुई।
1919 ई. में तुर्की खलीफा का पद समाप्त कर दिया गया। इससे भारतीय मुसलमानों को गहरा धाक्का लगा। फलस्वरूप 1919 में भारत में अली बंधुओं (मुहम्मद अली और शौकत अली) ने खिलाफत कमेटी का गठन कर खिलाफत आन्दोलन आरम्भ किया।
हिन्दू-मुस्लिम एकता स्थापित करने का उत्कृष्ट समय समझकर गांधी जी के नेतृत्व में कांग्रेस ने इसका समर्थन किया।
1922 ई. में यह आन्दोलन उस समय स्वतः ही समाप्त हो गया जब मुस्तफा कमाल पाशा के नेतृत्व में तुर्की में खलीफा की सत्ता समाप्त कर दी गई और आधुनिक लोकतांत्रिक व्यवस्था की शुरूआत की गयी।
असहयोग आन्दोलन – 1920-22 :
1920 में कलकत्ता में आयोजित विशेष अधिवेशन में असहयोग आन्दोलन का निर्णय लिया गया। इसका नेतृत्व गांधीजी ने किया।
इस आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य यह था कि जो भी सरकारी, राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक संस्थाएं हैं, उन सबका बहिष्कार कर दिया जाए और इस प्रकार सरकारी मशीनरी को बिल्कुल ही ठप्प कर दिया जाए।
आन्दोलन के कार्यक्रम :
उपाधियों एवं प्रशस्ति-पत्रों का परित्याग, सरकारी शिक्षण संस्थाओं का बहिष्कार, कर की अदायगी नहीं करना, विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार, अदालतों का बहिष्कार आदि।
5 फरवरी, 1922 को चौरी-चौरा (जिला-गोरखपुर, उत्तरप्रदेश) नामक स्थान पर हिंसक भीड़ ने थाना जला दिया। इसमें 21 सिपाही जलकर मर गए। इस घटना के बाद 12 फरवरी, 1922 को असहयोग आन्दोलन वापस ले लिया।
स्वराज दल :
असहयोग आन्दोलन की वापसी से असंतुष्ट सी. आर. दास, मोतीलाल नेहरू, विट्ठल भाई पटेल आदि ने दिसम्बर, 1922 में स्वराज्य पार्टी बनायी। 1 जनवरी, 1923 को कांग्रेस खिलाफत स्वराज पार्टी की स्थापना हुई। इसे स्वराज दल भी कहा जाता है।
स्वराज दल का उद्देश्य कौंसिल में प्रवेश कर सरकार के कार्य में अड़ंगा लगाना और अंदर से उसे नष्ट करना था।
सितम्बर, 1923 में कांग्रेस ने इस दल को मान्यता दे दी।
1925 में चितरंजन दास की मृत्यु के पश्चात् स्वराज दल कमजोर हो गया।
आन्दोलन का अंतिम चरण
भारत का विभाजन
साइमन कमीशन (1927 ई.) :
भारत में प्रशासनिक सुधार की जांच कर अपेक्षित सुधार के लिए रिपोर्ट देने के लिए 1919 के एक्ट के अनुसार 1927 ई. में सर जॉन साइमन की अध्यक्षता में 7 सदस्यीय (अध्यक्ष सहित) आयोग गठित किया गया, जिसमें कोई सदस्य भारतीय नहीं था।
यह कमीशन 3 फरवरी, 1928 को बम्बई में आकर उतरा। जहां-जहां यह कमीशन गया, उसे काले झण्डे दिखाए गए।
1928 ई. में लाहौर में साइमन कमीशन के विरोध प्रदर्शन में पुलिस की लाठी की चोट से घायल होने से ’शेरे पंजाब‘ लाला लाजपतराय की मृत्यु हो गयी।
1930 में कमीशन की रिपोर्ट प्रकाशित हुई।
सिफारिशें : प्रान्तों की स्वायतत्ता, साम्प्रदायिक निर्वाचन की व्यवस्था जारी, भारत के लिए संघीय संविधान आदि।
नेहरू रिपोर्ट (1928 ई.) :
साइमन कमीशन का बहिष्कार करने पर लार्ड बर्कन हेड ने भारतीयों को संविधान बनाने की चुनौती दी।
इस पर विचार हेतु 19 मई, 1928 को बम्बई में सर्वदलीय सम्मेलन हुआ। यहाँ पर मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में भारतीय संविधान के मसौदे तैयार करने के लिए एक आठ सदस्यीय समिति की नियुक्ति हुई।
इस समिति की रिपोर्ट को ’नेहरू रिपोर्ट‘ के नाम से जाना जाता है।
रिपोर्ट में ’डोमिनियन स्टेट्स‘ को पहला लक्ष्य तथा ’पूर्ण स्वराज‘ को दूसरा लक्ष्य घोषित किया गया।
जिन्ना फार्मूला (1929 ई.) :
नेहरू रिपोर्ट को मुहम्मद अली जिन्ना ने मुस्लिम विरोधी बताया और सितम्बर, 1929 में अपनी रिपोर्ट दी, जिसमें 14 शर्त़ें थी। इसे ही जिन्ना के 14 सूत्र कहा जाता है।
सविनय अवज्ञा आन्दोलन (1930-34 ई.) :
सविनय अवज्ञा आन्दोलन का आरम्भ 12 मार्च, 1930 को प्रसिद्ध ’डाडी मार्च‘ के साथ आरम्भ हुआ।
ब्रिटिशकालीन प्रमुख समाचार पत्र
14 फरवरी, 1930 ई. को साबरमती में कांग्रेस की एक बैठक में गांधी जी के नेतृत्व में सविनय अवज्ञा आन्दोलन चलाने का निश्चय किया।
दांडी मार्च (1930 ई.) : 12 मार्च, 1930 को गांधी जी अपने 78 सहयोगियों के साथ साबरमती आश्रम से 200 मील दूर समुद्र तट पर बसे दांडी गांव में 6 अप्रेल को पहुँचकर नमक बनाया और नमक कानून का उल्लंघन किया।
उत्तर पश्चिमी सीमा प्रान्त में खान अब्दुल गफ्फार खान के नेतृत्व में खुदई खिदमतगार आन्दोलन (लाल कुर्ती आन्दोलन) चला।
सपू एवं जयकर के प्रयासों से गांधी जी एवं इर्विन के मध्य 5 मार्च, 1931 को एक समझौता हुआ, जिसे गांधी जी को यरवदा जेल से रिहा कर दिया गया।
कांग्रेस द्वारा सरकार को आश्वासनः सविनय अवज्ञा आन्दोलन वापस, कांग्रेस द्वितीय गोलमेज में भाग लेगी।
आन्दोलन वापस ले लिया गया परन्तु समझौते की असफलता के बाद आन्दोलन पुनः शुरू हो गया और 1934 में अंतिम रूप से इसे समाप्त कर दिया गया।
प्रथम गोलमेज सम्मेलन :
12 सितम्बर, 1930 को लंदन में सम्राट जार्ज पंचम द्वारा इस सम्मेलन का उद्घाटन, अध्यक्षता प्रधानमंत्री रैम्जे मैक्डोनाल्ड ने की।
कांग्रेस ने इसमें भाग नहीं लिया।
द्वितीय गोलमेज सम्मेलन :
7 सितम्बर, 1931 को प्रारम्भ, कांग्रेस की ओर से गांधी जी ने भाग लिया।
एनी बेसेंट और मदन मोहन मालवीय ने व्यक्तिगत रूप से इस सम्मेलन में भाग लिया।
अल्पसंख्यकों के प्रश्न पर तथा साम्प्रदायिक निर्वाचन पद्धति पर सहमति के अभाव में यह सम्मेलन असफल रहा।
फ्रांक मोरीस ने गांधी जी के बारे में कहा, ’अर्द्धनंगे फकीर के ब्रिटिश प्रधानमंत्री से वार्ता हेतु सेण्ट जेम्स पैलेस की सीढ़ियां चढ़ने का दृश्य अपने आप में अनोखा एवं दिव्य प्रभाव उत्पन्न करने वाला था।‘
तृतीय गोलमेज सम्मेलन :
17 नवम्बर, 1932 से प्रारम्भ।
कांग्रेस के किसी प्रतिनिधि ने भाग नहीं लिया।
श्रम संघ आन्दोलन
मजदूरों के हित एवं सुविधाओं के लिए प्रयास 1881 (रिपन) में ही प्रारम्भ हो गए थे, जब प्रथम कारखाना कानून बनाया गया तथा दूसरा कारखाना कानून 1891 में पारित हुआ। प्रथम नियमित टेड यूनियन 1918 ई. में मद्रास में टेक्सटाइल लेबर यूनियन के नाम से वी. पी. वाडिया द्वारा शुरू किया गया। 1920 ई. में अखिल भारतीय टेड यूनियन कांग्रेस की स्थापना की गई। इसका पहला सम्मेलन 31 अक्टूबर, 1920 को बम्बई में हुआ जिसकी अध्यक्षता लाला लाजपतराय ने की।
एन. एम. जोशी ने एक नए संगठन ऑल इंडिया टेड यूनियन फेडरेशन का गठन किया।
पूना समझौता
1932 में ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैम्जे मैक्डोनाल्ड ने साम्प्रदायिक पुरस्कार की घोषणा की। इस घोषणा के तहत प्रत्येक अल्पसंख्यक समुदाय के लिए विधान मण्डल में कुछ सीटे आरक्षित की गयी थी।
इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात थी कि दलित वर्ग़ों को अल्पसंख्यक करार देकर उन्हें पृथक् निर्वाचन द्वारा प्रतिनिधि चुनने एवं साधारण निर्वाचन में मत देने का अधिकार मिला।
इस निर्णय द्वारा अंग्रेजी सरकार भारतीय समाज में फूट डालना चाहती थी इस कारण 20 सितम्बर, 1932 में गांधी जी ने यरवदा जेल में आमरण अनशन किया।
अंततोगत्वा मदनमोहन मालवीय तथा एम.सी. रजा के प्रयासों से गांधी जी एवं भीमराव अम्बेडकर के बीच समझौता हो गया। इसे ’पूना समझौता‘ के नाम से जाना जाता है।
कांग्रेस समाजवादी पार्टी :
1933 ई. में नासिक जेल में कांग्रेस के अन्दर एक समाजवादी दबाव समूह बनाने का विचार आया। विचारकों में जय प्रकाश नारायण, अशोक मेहता, मीनू मसानी तथा अच्युत पटवर्द्धन आदि शामिल थे।
मई, 1934 में ’कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी‘ की स्थापना हुई। आचार्य नरेन्द्र देव इसके प्रथम अधयक्ष थे तथा पहला सम्मेलन पटना में हुआ।
1937 के चुनाव :
1937 ई. के असेम्बली चुनाव में कांग्रेस ने बहुमत प्राप्त कर कई प्रान्तों में सरकार बनाई।
भारत को द्वितीय विश्व युद्ध में बिना उद्देश्य बताए शामिल करने के विरोध में 1939 में कांग्रेसी मंत्रिमण्डल ने सामूहिक त्याग पत्र दे दिया।
इससे मुस्लिम लीग को बहुत प्रसन्नता हुई और उसने 22 दिसम्बर को मुक्ति दिवस मनाया तथा 1940 के लाहौर अधिवेशन में मुसलमानों के लिए पृथक् राष्ट्र पाकिस्तान की मांग की।
1930 में सर मुहम्मद इकबाल ने सर्वप्रथम द्वि राष्ट्र सिद्धान्त की बात कही थी। परन्तु पाकिस्तान शब्द का सृजन कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के स्नातक रहमत अली ने किया था।
’सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तां हमारा‘ नामक गीत की रचना मुहम्मद इकबाल ने की थी।
अगस्त प्रस्ताव (1940 ई.) :
संवैधानिक गतिरोध को दूर करने के लिए औपनिवेशक स्वराज्य संदर्भ में 8 अगस्त, 1940 को एक प्रस्ताव की घोषणा लार्ड लिनलिथगो ने भारतीयों के लिए की। जिसे अगस्त प्रस्ताव कहते हैं।
व्यक्तिगत सत्याग्रह :
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान राष्ट्रीय आन्दोलन की स्थिरता को तोड़ने के लिए गांधी जी ने 1940 में व्यक्तिगत सत्याग्रह आरम्भ किया।
17 अक्टूबर, 1940 को पवनार में बिनोवा भावे ने सत्याग्रह आरम्भ किया। वे प्रथम सत्याग्रही थे।
क्रिप्स मिशन (1942 ई.) :
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारतीयों का सक्रिय सहयोग पाने के उद्देश्य से ब्रिटेन के प्रधानमंत्री चर्चिल ने ब्रिटिश संसद के सदस्य स्टेफोर्ड क्रिप्स की अध्यक्षता में एक मिशन बनाया।
23 मार्च, 1942 को क्रिप्स मिशन दिल्ली पहुंचा और 30 मार्च को अपनी योजना प्रस्तुत की।
एम. एन. राय एवं ए. घोष ने इस योजना पर सकारात्मक प्रतिक्रियाएं व्यक्त की। गांधी जी ने इसे ’पोस्ट डेटेड चेक’ की संज्ञा दी।
भारत छोड़ो आन्दोलन
कांग्रेस ने 8 अगस्त, 1942 को ’भारत छोड़ो‘ प्रस्ताव पास किया। इससे पहले गांधी जी के इस अहिंसक प्रस्ताव को जुलाई, 1942 में वर्धा में कांग्रेस कार्यकारिणी ने स्वीकृति प्रदान कर दी थी।
गांधी जी ने बम्बई के ग्वालिया टैंक मैदान में लोगों को करो या मरो का नारा दिया।
9 अगस्त को सरकार ने कांग्रेस के सभी प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार कर लिया। अंग्रेजों ने इस कार्य को ’ऑपरेशन जीरो आवर‘ की संज्ञा दी।
मुस्लिम लीग इस आन्दोलन से अलग रही। जिन्ना ने 23 मार्च, 1943 को ’पाकिस्तान दिवस‘ मानने का आह्वान किया।
पूर्ण समर्थन के अभाव में तथा सरकारी दमन के कारण यह आन्दोलन असफल हो गया।
राजगोपालाचारी फार्मूला (1944 ई.) :
सी. राजगोपालाचारी ने 1944 में एक प्रस्ताव तैयार किया। यह प्रस्ताव सी. आर. फार्मूला के नाम से विख्यात है।
सी. आर. फार्मूला की मुख्य बातें : मुस्लिम लीग भारत की स्वतंत्रता की मांग का समर्थन करेगी तथा अस्थायी सरकार के गठन में कांग्रेस को सहयोग देगी।
देश के बंटवारे की स्थिति में आवश्यक विषयों पर आपसी समझौता।
जिन्ना ने इस प्रस्ताव को अमान्य कर दिया और कहा कि इसमें गाड़ी को घोड़े के आगे लगाया गया है।
वेवेल योजना (1945 ई.) :
गवर्नर जनरल लार्ड वेवेल ने ब्रिटिश सरकार से परामर्श के पश्चात्, भारतीय नेताओं के सामने भारतीय समस्या का नवीन हल प्रस्तुत किया। इसे ’वेवल योजना‘ के नाम से जाना जाता है। 1945 ई. में उन्होंने अपनी योजना प्रस्तुत की।
मुख्य प्रावधानः गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी में भारतीय सदस्यों की नियुक्ति, विदेशी विभाग भारतीयों के हाथों में, ब्रिटिश हाई कमिश्नर की नियुक्ति, युद्धोपरान्त भारतीयों द्वारा संविधान का निर्माण, गवर्नर जनरल के निषेधाधिकार पर नियंत्रण आदि।
शिमला समझौता (1945 ई.) :
वेवेल योजना पर विचार करने के लिए जून, 1945 में शिमला में एक सम्मेलन का आयोजन किया गया। इसमें कांग्रेस, मुस्लिम लीग, केन्द्रीय विधानसभा यूरोपीयन दल आदि ने भाग लिया। परन्तु जिन्ना ने मुस्लिम लोग को ही मुसलमानों की एक मात्र संस्था मानते हुए कोई समझौता करने से इंकार कर दिया। फलतः सम्मेलन असफल हो गया।
आजाद हिन्द फौज
जनवरी, 1941 को सुभाषचन्द्र बोस भारत से निकलकर अफगानिस्तान और इटली होते हुए जर्मनी पहुंचे। इसके बाद जापान गये।
मार्च, 1942 में टोकियों में रह रहे रास बिहारी बोस ने ’इंडियन नेशनल आर्मी’ के गठन पर विचार के लिए सम्मेलन बुलाया। कैप्टन मोहन सिंह, रास बिहारी बोस एवं निरंजन मिल के सहयोग से ’इंडियन नेशनल आर्मी‘ का गठन किया गया।
4 जुलाई, 1943 को सुभाष चन्द्र बोस ने इंडियन लीग की कमान संभाली। सिंगापुर में उन्होंने दिल्ली चलो का नारा दिया।
21 अक्टूबर को सुभाष चन्द्र बोस ने आजाद हिन्द फौज और आजाद हिंद सरकार की स्थापना की।
दूसरे विश्वयुद्ध में जापान की पराजय से आजाद हिन्द फौज को भी पराजित होना पड़ा और 1945 में अंग्रेजों ने इसके अधिकारियों को गिरफ्तार कर लिया।
कर्नल सहगल, कर्नल ढिल्लो एवं मेजर शाहनवाज खां पर राजद्रोह का मुकदमा चला परन्तु लार्ड वेवेल ने अपने विशेषाधिकारों का प्रयाग करके इन्हें मृत्यु दंड से मुक्त कर दिया।
इस मुकदमें के पक्ष में तेज बहादुर, सपू, जवाहर लाल नेहरू, भुलाभाई देसाई तथा के. एन. काटजू ने दलीलें दी।
कांग्रेस अधिवेशन
नौसेना विद्रोह (1946 ई.) :
18 फरवरी, 1946 ई. को बम्बई में नौसेना ने खुला विद्रोह कर ब्रिटिश सम्मान को गहरी चोट पहुंचाई। यह विद्रोह तलवार नामक जहाज से आरम्भ हुआ था। विद्रोह के प्रमुख नेता एम. एस. खान थे।
प्रमुख मांगे : बेहतर भोजन, बेहतर जीवन, भेदभाव का अंत, आजाद हिन्द फौज के कैदियों की रिहाई आदि।
23 फरवरी, 1946 को पटेल ने जिन्ना की सहायता से नौ सैनिकों को समर्पण के लिए तैयार कर लिया।
कैबिनेट मिशन (1946 ई.) :
ब्रिटेन की एटली सरकार ने भारत को औपनिवेशिक स्वराज प्रदान करने के उद्देश्य से 19 फरवरी, 1946 को कैबिनेट मिशन भारत भेजने की घोषणा की।
इस मिशन में भारत मंत्री लार्ड पैथिक लॉरेंस, सर स्टैफोर्ड क्रिप्स और ए. बी. अलेक्जेंडर शामिल थे।
कैबिनेट मिशन योजना के मुख्य तथ्य : भारत एक संघ होगा, ब्रिटिश भारत और देशी रियासतों का एक संघ बने, जिसके हाथों में विदेश विभाग, रक्षा तथा यातायात संबंधी रखे अथवा प्रान्तों से।
मिशन ने पाकिस्तान की मांग को स्वीकार नहीं किया।
संविधान निर्माण से पूर्व एक अंतरिम सरकार का गठन।
माउन्टबेटन योजना (1947 ई.) :
माउण्ट बेटन योजना को ’बाल्कन योजना‘ के नाम से भी जाना जाता है।
भारत की तत्कालीन स्थिति से चिंतित होकर ब्रिटेन के प्रधानमंत्री एटली ने 20 फरवरी, 1947 को यह घोषणा की कि अंग्रेजी सरकार जून, 1948 ई. के पूर्व सत्ता भारतीयों को सौंप देगी।
इस घोषणा के तहत 24 मार्च, 1947 ई. को लार्ड माउन्टबेटन वायसराय बने।
3 जून, 1947 को उनकी योजना प्रकाशित हुई। इसी के तहत भारत-पाक विभाजन हुआ।
भारतीय स्वतंत्रता अधिनिमय 1947 ई. : ब्रिटिश पार्लियामेंट ने 4 जुलाई, 1947 को भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम प्रस्तावित किया जो 18 जुलाई, 1947 को स्वीकृत हो गया।
14 अगस्त को पाकिस्तान का निर्माण हुआ और ठीक 12 बजे रात्रि को 15 अगस्त, 1947 ई. को भारत स्वतंत्र हुआ। जिन्ना पाकिस्तान के गवर्नर जनरल और लियाकत अली प्रधानमंत्री बने। भारत के गवर्नर जनरल लार्ड माउन्टबेटन और प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू बने।
देशी रजवाड़ों का विलय
15 अगस्त, 1947 तक कश्मीर, जूनागढ़ और हैदराबाद को छोड़कर सभी देशों रियासतें भारत के साथ (बहावलपुर पाकिस्तान के साथ) विलय के दस्तावेज पर हस्ताक्षर के लिए सहमत हो गयी थी। इस दस्तावेज में प्रतिरक्षा, विदेशी मामलों तथा संचार के क्षेत्र में केन्द्रीय सत्ता को स्वीकार किया गया था।
सरदार वल्लभ भाई पटेल ने जुलाई, 1947 में राज्यों के विभाग का प्रमुख बनकर सभी रियासतों को विलय के लिए राजी किया। इसलिए उन्हें भारत का बिस्मार्क भी कहा जाता है। इस कार्य में उनकी सहायता वी. पी. मेनन ने की।
जनमत संग्रह के पश्चात् 20 फरवरी, 1949 को जूनागढ़ भारत में सम्मिलित हो गया। एक पुलिस कार्रवाई के पश्चात् 1 नवम्बर, 1948 को हैदराबाद शामिल हो गया।
20 मई, 1946 को कश्मीर के हिन्दू शासक महाराजा हरि सिंह के विरूद्ध कश्मीर छोड़ो आन्दोलन के दौरान ’नेशनल कांग्रेस‘ के नेता शेख अब्दुल्ला गिरफ्तार कर लिये गये।
20 जून, 1946 को थोड़े समय के लिए कश्मीर में प्रवेश निषेध का उल्लंघन करने के आरोप में भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को भी गिरफ्तार कर लिया गया था।
अक्टूबर, 1947 में पाक समर्थित सीमावर्ती कबालियों द्वारा कश्मीर पर आक्रमण करने के बाद महाराजा हरि सिंह ने 26 अक्टूबर, 1947 को कश्मीर का भारत में विलय से संबंधित पत्र पर हस्ताक्षर कर दिये।
ब्रिटिश भारत में संवैधानिक विकास
रेगूलेटिंग एक्ट (1773 ई.) : ईस्ट इंडिया कम्पनी द्वारा किए जा रहे कार्यों का नियंत्रण, ब्रिटिश सरकार द्वारा गवर्नर जनरल तथा उसकी चार सदस्यीय परिषद द्वारा बंगाल का शासन तथा कलकत्ता में सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना।
पिट्स इंडिया एक्ट (1784 ई.) : भारत में कम्पनी के मामले पर नियंत्रण एक नियंत्रक परिषद (बोर्ड ऑफ कन्ट्रोल) के द्वारा, जिसमें एक चांसलर ऑफ एक्सचेकर एक राज्य सचिव तथा चार प्रिवी काउंसिल के सदस्य थे। भारत में प्रशासन गवर्नर जनरल तथा उसकी तीन सदस्यीय परिषद के हाथ में बम्बई तथा मद्रास प्रंसीडेन्सी भी बंगाल के गवर्नर जनरल के अधीन।
1813 का चार्टर एक्ट : कम्पनी के व्यापारिक विशेषाधिकार को केवल चाय तथा चीन के साथ व्यापार को छोड़कर समाप्त कर दिया गया, शिक्षा पर प्रतिवर्ष एक लाख रुपये खर्च किए जाने का प्रावधान किया गया।
1833 का चार्टर एक्ट : बंगाल का गवर्नर भारत का गवर्नर जनरल बना, मद्रास एवं बम्बई के वैधानिक अधिकारों की समाप्ति, गवर्नर जनरल की परिषद में अब चार सदस्य विधि आयोग का गठन।
1853 का चार्टर एक्ट : प्रतियोगितात्मक परीक्षाओं के आधार पर सरकारी सेवा में भर्ती शुरू इसकी देख-रेख के लिए मैकाले की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन, विधायी एवं कार्यकारी परिषद अलग-अलग हुई, विधि सदस्य को एक पूर्ण सदस्य का दर्जा मिला एवं छः नये सदस्य शामिल।
भारतीय परिषद अधिनियम 1858 ई. : वायसराय की कार्यकारी परिषद में एक पांचवाँ सदस्य शामिल, लार्ड कैनिंग द्वारा विभिन्न मंत्रालयों में विभाग-पद्धति की स्थापना, विधायी कार्यों के लिए वायसराय द्वारा 6 से 12 की संख्या में अतिरिक्त सदस्यों को कार्यकारी परिषद में शामिल किया गया, मद्रास एवं बम्बई को विधायी शक्तियां पुनः सौंपी गई, लेकिन इस पर वायसराय की सहमति अनिवार्य, गवर्नर जनरल को संकटकालीन अवस्था में विधान परिषद की अनुमति के बिना अधयादेश जारी करने का अधिकार, जो अधिकाधिक छः मास तक लागू रह सकता था।
भारतीय परिषद अधिनियम, 1909 (मोर्ले- मिन्टो सुधार) : अतिरिक्त सदस्यों की संख्या बढ़ाकर 60 कर दी गई, सत्येन्द्र सिन्हा वायसराय की कार्यकारिणी परिषद के सदस्य चुने गए। प्रान्तीय कार्यकारिणी परिषदों में भी सदस्य संख्या बढ़ी। मुसलमानों को पृथक् प्रतिनिधित्व मिला, इस प्रकार साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व की प्रणाली लागू की गई।
भारत सरकार अधिनियम, 1919 (मान्टेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार) : गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी परिषद की संख्या बढ़ाकर आठ कर दी गई। केन्द्रीय स्तर पर द्वि-सदनीय व्यवस्था (उच्च सदन, कौंसिल ऑफ स्टेट्स एवं निम्न सदन, केन्द्रीय विधायिका सभा) लागू, प्रान्तों में द्वैध शासन प्रणाली प्रारम्भ, प्रान्तीय सरकार द्वारा शासित होने वाले विषयों को दो भागों में विभक्त किया गया-आरक्षित एवं हस्तांतरित। आरक्षित विषयों का निष्पादन गवर्नर द्वारा कार्यकारिणी परिषद की सलाह पर प्रान्तीय परिषदों के 70 प्रतिशत सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष विधा से मेस्टन निर्णय के अनुसार प्रान्तीय सरकार केन्द्रीय सरकार को एक निश्चित धान राशि प्रतिवर्ष देती थी।
भारत सरकार अधानियम, 1935 : प्रान्तों में द्वैध शासन समाप्त कर केन्द्रीय स्तर पर द्वैध शासन की शुरूआत, एक भारतीय परिसंघ की परिकल्पना, जिसमें सभी प्रान्त एवं स्वेच्छानुसार देशी रियासतें भी शामिल थीं केन्द्रीय विधायिका के दो सदन राज्य सभा एवं संघीय सभा, जिनमें राज्य सभा, स्थायी सदन था। इसके एक तिहाई सदस्य प्रत्येक दो वर्ष पर सेवा मुक्त होते थे। एक संघीय न्यायालय की स्थापना, संविधान संशोधन का अधिकार ब्रिटिश सरकार को इस अधिनियम के अनुसार 1937 में चुनाव के बाद कांग्रेस ने सात प्रान्तों में अपनी सरकार बनायी।
प्रमुख राष्ट्रीय संस्थाएं
प्रमुख ब्रिटिश गर्वनर/गवर्नर
राबर्ट क्लाइव : 1765-72 तक बंगाल में द्वैध-शासन व्यवस्था रही, अर्थात् बंगाल का प्रशासन दो पृथक् शक्तियों-ईस्ट इंडिया कम्पनी और नवाब द्वारा संचालित होता रहा। लार्ड क्लाइव 1757-60 तक एवं पुनः 1765-67 तक बंगाल का गर्वनर रहा। उसने मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय को इलाहाबाद की द्वितीय संधि 1766 के द्वारा कम्पनी के संरक्षण में ले लिया।
वॉरेन हेस्ग्सिं : यह 1772 से 1774 तक बंगाल का गवर्नर तथा 1774 से 1785 तक बंगाल का गवर्नर जनरल रहा। कलकत्ता में एक सर्वोच्च न्यायालय तथा जिला स्तर पर दीवानी एवं फौजदारी न्यायालयों की स्थापना कराई। एशियाटिक सोसायटी का संरक्षक बना। प्रथम आंग्ल-मराठा तथा द्वितीय आंग्ल-मैसूर युद्ध उसके समय में लड़े गये एवं राजकीय कोषगार को मुर्शिदाबाद से हटाकर कलकत्ता लाया गया।
लॉर्ड कॉर्नवालिस (1786-93 एवं 1805) : थानों (पुलिस स्टेशनों) की स्थापना कराई, भारत के लिए ब्रिटिश नागरिक सेवा की स्थापना की, 1793 में ’स्थाई बंदोबस्त‘ (Permanent Statement) की पद्धति लागू की, जिसके अंतर्गत जमींदार एवं उनके उत्तराधिकारी एक निश्चित धनराशि (भू-राजस्व को 10/11 या 89) अदा करते रहने से लम्बे समय तक भूमि के मलिक बने रहते। पदाधिकारियों के लिए आचार संहिता बनायी जिसे, ’कार्नवालिस कोड‘ कहा जाता था।
लार्ड मिंटो प्रथम (1807-1813) : रणजीत सिंह एवं अंग्रेजों के बीच ’अमृतसर की संधि‘ (1809)।
मार्क्वस ऑफ हेस्ग्सिं (1813-1823) : पिंडारियों का दमन, मराठा शक्ति अंतिम रूप से नष्ट कर दी गयी। मालाबार, कनारा, कोयम्बटूर, मदुरै एवं डिंगडिगुल में रैयतवाड़ी एवं महलवारी दोनों की मिली-जुली भू-प्रणाली लागू की गयी नयी न्याय प्रणाली तथा प्रेस पर पहले से चला आ रहा प्रतिबंध समाप्त कर दिया गया।
लॉर्ड विलियम बेंटिक (1828-35) : 1833 ई. में चार्टर अधिनियम के अंतर्गत बेंटिक भारत का प्रथम गवर्नर जनरल बना। 1829 में सती प्रथा समाप्त, शिशु बालिका की हत्या का प्रतिबंधा, ठगी प्रथा की समाप्ति, मैकॉले द्वारा कानून का वर्गीकरण, मैकाले की अनुशंसा (Mecaley's minute) के आधार पर अंग्रेजी को शिक्षा का माधयम मानना इत्यादि अति महत्वपूर्ण कार्य। यद्यपि वह अहस्तक्षेप की नीति का पालन करता था, फिर भी अपनी इस नीति से हटकर उसने 1831 में मैसूर तथा 1834 में कूर्ग एवं मध्य कचेर को हड़प लिया। उसने भारतीयों को भी उत्तरदायी पदों पर नियुक्त किया।
चार्ल्स मेटकॉफ (1835-36) : प्रेस पर से सभी प्रतिबंधों को समाप्त कर दिया।
लॉर्ड हार्डिंग (1844-1848) : प्रथम आंग्ल - सिख युद्ध (1845-46) एवं लाहौर की संधि।
लॉर्ड डलहौजी (1848-56) : द्वितीय आंग्ल - सिख युद्ध (1848-49) एवं पंजाब का अधिग्रहण। द्वितीय आंग्ल-बर्मी युद्ध तथा निम्न बर्मा का अधिग्रहण (1852), ’हड़प नीति‘ के अंतर्गत 1848 में सतारा, 1849 में जयपुर एवं संभलपुर, 1850 में बघाट, 1853 में उदयपुर, 1853 में झांसी तथा 1854 में नागपुर को हस्तगत कर लिया।
लॉर्ड कैनिंग (1856-58) : ईरानियों के साथ युद्ध, सर्वप्रथम कलकत्ता, मद्रास एवं बम्बई में विश्वविद्यालयों की स्थापना तथा 10 मई, 1857 को शुरू होने वाला प्रथम स्वतंत्रता संग्राम या विद्रोह।
भारत के गर्वनर जनरल
लॉर्ड कैनिंग (1858-62) : 1857 के विद्रोह के बाद प्रशासनिक सुधार के अंतर्गत भारत का शासन कम्पनी के हाथों से सीधा ब्रिटिश सरकार के नियंत्रण में ले गया तथा गवर्नर जनरल, वायसराय (प्रतिनिधा) कहे जाने लगे। कैनिंग जो 1856 में गर्वनर जनरल बनकर आया था, 1858 से प्रथम वायसराय के रूप में भी जाना जाता है। इसके काल में प्रत्येक प्रेसीडेंसी में एक-एक उच्च न्यायालय की स्थापना की गयी और कम्पनी एवं ब्रिटिश राज्य की सेना को एक में मिला दिया गया, आयकर लगाया जाने लगा, विलय की नीति को समाप्त कर दिया गया, मैकाले द्वारा प्रारूपित दंड संहिता को 1858 में कानून का रूप दिया तथा 1859 में अपराध विधान-संहिता (CPC) लागू की गयी।
लॉर्ड मेयो (1869-72) : महारानी विक्टोरिया के द्वितीय पुत्र जो एडिनबर्ग के ड्यूक भी थे, भारत आये। वित्तीय विकेन्द्रीकरण के उपाय किये गये, लॉर्ड मेयो की 1872 में चाकू मारकर हत्या कर दी गयी।
लॉर्ड लिटन (1876-80) : द्वितीय आंग्ल-अफगान युद्ध (1878-80) जो अंग्रेजों द्वारा नयी अग्रगामी नीति अपनाने के कारण अवश्यंभावी हो गयी थी। 1876-78 में बम्बई एवं मद्रास में भीषण दुर्भिक्ष तथा एक अकाल आयोग का गठन, रेल, सड़क एवं नहरों का बड़े पैमाने पर निर्माण, पहली जनवरी, 1877 को महारानी विक्टोरिया को भारत की सम्राज्ञी (कैसरे - हिन्द) की उपाधि देने के लिए शानदार प्रथम दिल्ली दरबार का आयोजन, प्रान्ती सरकारों को एक निश्चित राशि के बदले राजस्व वसूली के हिस्से के आधार पर अनुदान, 1878 में देशी भाषाओं में छपने वाले समाचार-पत्रों पर विभिन्न प्रकार के प्रतिबंध लगाने हेतु ’वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट‘ लागू, सिविल सेवा परीक्षाओं में प्रवेश की अधिकतम आयु 21 वर्ष से घटाकर 19 वर्ष कर देना आदि। विद्वानों के बीच वह ’औवेन मेरेडिथ‘ (Owen Meredith) के नाम से जाना जाता है।
लॉर्ड रिपन (1880-84) : स्थानीय स्वशासन की शुरूआत। सर्वाधिक लोकप्रिय वायसराय, जिसने अफगान युद्ध को तथा 1882 में वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट को समाप्त कराया, सिविल सेवा में प्रवेश परीक्षा हेतु न्यूनतम आयु को 19 वर्ष से बढ़ाकर पुनः 21 वर्ष किया। लॉर्ड मेयो की आर्थिक हस्तांतरण की नीति को पुनः शुरू किया, बाल श्रमिकों के कल्याण हेतु प्रथम कारखाना नियम (1881) लागू करना, स्थानीय स्वशासन का प्रस्ताव (1882), विलियम हंटर की अध्यक्षता में एक शिक्षा आयोग का गठन (1882), मैसूर राज्य की पुनर्स्थापना तथा उसके शासन के रूप में पूर्व राजवंश की स्थापना, यूरोपीयों के विरूद्ध भारतीय न्यायाधीशों द्वारा मुकदमों की सुनवाई के लिए प्रथम इल्बर्ट विधेयक लाना, लेकिन यूरोपवासियों के प्रबल प्रतिरोध के कारण इसे वापस लेना पड़ा, प्रथम नियमित जनगणना (1881) सम्पन्न तथा 1909 में रिपन की मृत्यु।
लॉर्ड डफरिन (1884-88) : तृतीय आंग्ल-बर्मा युद्ध एवं बर्मा का अंतिम रूप से अधिग्रहण (1886) ग्वालियर पर सिंधियों के शासन की पुनर्स्थापना, 1885 के बंगाल काश्तकारी कानून एवं 1887 के पंजाब कानून द्वारा काश्तकारों को गलत ढंग से जमीन से बेदखल करने पर रोक तथा बम्बई में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना (दिसम्बर, 1885)।
लॉर्ड कर्जन (1899-1905) : सर्वाधिक अलोकप्रिय वायसराय, 1902 में एक ’विश्वविद्यालय आयोग‘ की स्थापना तथा 1904 में ’भारतीय विश्वविद्यालय कानून‘ तथा एक दुर्भिक्ष आयोग का गठन, 1901 में सर कोलिन स्कॉट मॉक्रिफ के नेतृत्व में एक ’सिंचाई आयोग’ का गठन, झेलम नहर का कार्य सम्पन्न, कृषि- विभाग का गठन भारत को स्वर्ण मानक के अंदर शामिल कर लिया गया, सेना की एक कठिन जांच परीक्षा ’किचनर जांच शुरू 1899 के कलकत्ता नगर निगम कानून द्वारा निगम में निर्वाचित सदस्यों की संख्या में कटौती, प्राचीन स्मारक कानून पारित (1904), बंगाल का विभाजन (1905) तथा बंग-भंग का प्रबल विरोध, स्वदेशी आन्दोलन आरम्भ तथा एक नये उत्तर-पश्चिम सीमान्त प्रदेश का गठन।‘
लॉर्ड हार्डिंग (1910-1916) : सम्राट जॉर्ज पंचम के सम्मान में दिल्ली में अभिषेक दरबार (1911 ई.) का आयोजन, 1914 में प्रथम विश्वयुद्ध शुरू, मदन मोहन मालवीय द्वारा बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना।
लॉर्ड चेम्सफोर्ड (1916-21) : 20 अगस्त, 1917 को भारत सचिव मॉन्टेग्यू द्वारा सुधारों से संबंधित अगस्त घोषणा, दमनकारी रॉलेट कानून (1919), जलियांवाला बाग हत्याकांड 13 अप्रैल, 1919, मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार या भारत सरकार अधिनियम (1919-22)।
लॉर्ड रीडिंग (1921-26) : वेल्स के राजकुमार के भारत भ्रमण का बहिष्कार (1921), सामूहिक ’नागरिक अवज्ञा आन्दोलन‘ की घोषणा (1 फरवरी, 1922), चौरी-चौरा में 22 पुलिसकर्मियों की हत्या (5 फरवरी, 1922) एवं गांधी द्वारा आन्दोलन वापस, गांधीजी को छः वर्ष़ों के कारावास की सजा। दिसम्बर 1922 में देशबंधु चितरंजन दास की अध्यक्षता में कांग्रेस-खिलाफत ’स्वराज पार्टी‘ (कांग्रेस के अधीन कार्य करने हेतु एक दल) की स्थापना, गांधीजी रिहा (5 फरवरी, 1924)।
लॉर्ड इर्विन (1926-31) : साइमन कमीशन भारत आया, द्वितीय सविनय अवज्ञा आन्दोलन (मार्च 1930) शुरू, लंदन में प्रथम गोलमेज सम्मेलन, 1930 (कांग्रेस ने इसका बहिष्कार किया), गांधी-इर्विन समझौता (1931)।
लॉर्ड वेलिंग्टन (1931-36) : द्वितीय गोलमेज सम्मेलन, 1931 (कांग्रेस ने इसमें भाग लिया) साम्प्रदायिक अधिनिर्णय (1932), पूना समझौता (1932), तृतीय गोलमेज सम्मेलन (1932), बिहार में भूकम्प (1934), भारत सरकार अधिनियम 1935।
लॉर्ड लिनलिथगो (1936-43) : 7 प्रान्त में नयी कांग्रेस सरकारों की स्थापना (1937), द्वितीय विश्व-युद्ध शुरू (1939), कांग्रेस मंत्रिमण्डलों का सामूहिक त्यागपत्र, क्रिप्स मिशन भारत आया (1942), भारत छोड़ो आन्दोलन (8 अगस्त, 1942)।
लॉर्ड वेवेल (1943-47) : शिमला सम्मेलन (1945), कैबिनेट मिशन (1946), जवाहर लाल नेहरू की अंतरिम सरकार (1946)।
लार्ड माउंटबेटन (मार्च, 1947, जून, 1848) : भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम (1947), भारत का विभाजन, माउंटबेटन अंतिम ब्रिटिश वायसराय एवं स्वतंत्र भारत के प्रथम गवर्नर जनरल बने।
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